क्लास ऑफ ’83
कहानी-एक पुलिस ऑफिसर हैं, विजय सिंह, जिन्हे पनिश्मन्ट पोस्टिंग पर पुलिस ट्रैनिंग अकादेमी के डीन बना दिया जाता है। विजय सिंह का भौकाल है एकाडमी में, हालाँकि उन्होंने कोई क्लास
कहानी-एक पुलिस ऑफिसर हैं, विजय सिंह, जिन्हे पनिश्मन्ट पोस्टिंग पर पुलिस ट्रैनिंग अकादेमी के डीन बना दिया जाता है। विजय सिंह का भौकाल है एकाडमी में, हालाँकि उन्होंने कोई क्लास
जहाँ एक तरफ इस वक्त नेटफ़्लिक्स, हॉटस्टार, प्राइम विडिओ आदि का OTT वार चल रहा है, और सभी बड़े बड़े डिरेक्टर्ज़, सिलेब्रिटीज़ को अपनी ओर खींचने की होड़ में लगे
एक महामारी के चलते पूरी दुनिया मे हाहाकार मचा हुआ था। ऐसी समस्या से निपटने के लिए तैयारियाँ और अनुभव न होने से देश मे कुछ भी हो रहा था।
कठिन से कठिन बातों को कहने और समझाने के लिए फ़िल्में कितना सशक्त माध्यम हो सकती हैं, इसका उदाहरण है ज़ी5 की फिल्म ‘चिंटू का बर्थडे’ कहानी है एक प्रवासी
बचपन में स्कूल में कभी शिवाजी और सिंहगढ़ के किले की लड़ाई के बारे में पढ़ा था। ‘गढ़ आया, पर सिंह गया’ वाली लाइन न जाने क्यों हमेशा याद रही।पर
पहली बात, उजड़ा चमन और बाला दोनों ही गंजेपन पे आधारित पहली हिंदी फ़िल्म होने का दावा करते हैं, पर इस विषय पर पहली फ़िल्म ‘गॉन केश’ है जो मार्च
टेररिज्म, इंडियन बंधक, इंडियन इटेलेजेंस आदि में शोज और मूवीज की भरमार है इस समय। अभी कुछ दिन पहले प्राइम का ‘द फैमिली मैन’ आया था। अब और नेटलफिक्स का
एक ज़माना था जब हृषिकेश मुखर्जी, फारुख शेख़, अमोल पालेकर, दीप्ति नवल और उत्पल दत्त आदि की फिल्में बड़े बड़े नामों वाले एक्टर्स और डायरेक्टर्स की फिल्म्स के बावजूद अपनी
छिछोरे जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है ,एक हल्की-फुल्की फ़िल्म है पर एक गंभीर विषय पे। और अगर इसके डायरेक्टर ‘दंगल’ वाले नितेश तिवारी ना होते तो शायद इसे
हमारी कंपनी के किसी भी प्रमोशनल वीडियो में, ऑफिस या एड की फोटोज से आप जानेंगे कि यहाँ जेंडर रेशियो पाँच महिलाओं पे एक पुरुष है, विकिपीडिया से आप जानेंगे
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