विदा फ़ारुख़
बचपन में सेट मैक्स, ज़ी सिनेमा और स्टार टीवी पर दिखाई गई फिल्मों के कारण फ़ारुख़ शेख़ दिमाग में कुछ इस तरह बस गए थे कि अब स्मृति से छूटते
बचपन में सेट मैक्स, ज़ी सिनेमा और स्टार टीवी पर दिखाई गई फिल्मों के कारण फ़ारुख़ शेख़ दिमाग में कुछ इस तरह बस गए थे कि अब स्मृति से छूटते
कहानी में नाटकीयता की अवधारणा को लेकर हॉलीवुड ने अपने सिनेमा को शिखर तक पहुंचाया है। ‘ड्रामा’ शब्द में जो मंतव्य छुपा हुआ है वही कहानी और अभिनय को लेकर
हिन्दी साहित्य और सिनेमा में जो हैसियत गुलज़ार साहब की है और रही, वैसी किसी की न थी। मतलब सीधा-सीधा कला में दखलंदाज़ी। यानि गीत, कविता, नज़्म, शायरी, कहानी, पटकथा,
राजस्थान साहित्य अकादमी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘मधुमती’ के ताज़ा मई 2020 अंक में अभिनेता इरफ़ान पर मेरा यह विशेष आलेख प्रकाशित हुआ है। आलेख ‘इरफ़ान: वो कैमरे में झांक भर
आज सत्यजित रे का जन्मदिन होता है. रे से मेरा या हमारा क्या ताल्लुक़? क्या केवल पाँच-सात फ़िल्में देखने के बाद हम किसी को एडमायर करने लग जाते हैं. या
उदास शहर की उदास खिड़की पर इन दिनों बेरुख़ी है नहीं उतरता उसकी ग्रिल पर चिड़िया का शोर चारों ओर फैले सुनसान में संगीतकार सुन नहीं पा रहा स्वर साधु
निर्मल जी, आपको जब यह ख़त लिख रहा हूँ तो आज आपको गुज़रे हुए कोई 15 वर्ष हो चुके. पर आज तो आपका जन्मदिन है! मैं क्यों जन्म के दिन
सर्दी की इक सुबह उग रही थी धूप जब धीरे-धीरे मैं चढ़ रहा था पहाड़ पर देख रहा था गिरती वादियों को आसमान कुछ हरा था लचक कर चल रही
कह देने की ये कौन सी तड़प है ? क्यूँ केवल कह देने भर से मन नहीं भरता? क्यूँ ज़रूरी है इतना भरोसा कि सुना जा रहा है ? न
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