1.
मैंने उसे लिखी कई चिट्ठियाँ
मगर उसका नाम,
कहीं नहीं लिखा
बल्कि आँखों के पोरों से चुनकर
लगा दिया एक काला टीका
कि मेरे प्यार को किसी की
बुरी नज़र ना लगे
और अपने नाम की जगह
ख़त के आखिर में
चस्पा दिया एक नर्म बोसा
कि वह जितनी भी दूर रहे
उसे मेरी याद रहे !!
2.
अब मैं उसे नहीं लिखती चिट्ठियाँ
लिखती हूँ भँवरे की गुंजन से
वसंत का लौटना
और मेह के मीठे चुम्बन से
मोती का बनना
चंद्रमा का सोलह कलाओं से
लहरों पर थिरकना
और नेह आबद्ध आलिंगन से
उसे बहुत करीब महसूस करना
सुना है!
कभी-कभी कविताओं के ज़रिए
खो गया प्रेम…
वापस लौट आता है !!
रेणु मिश्रा के काव्य संग्रह ‘जब मैं कोई नहीं हूँ‘ से