इरफ़ान : वो कैमरे में झाँक भर ले
राजस्थान साहित्य अकादमी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘मधुमती’ के ताज़ा मई 2020 अंक में अभिनेता इरफ़ान पर मेरा यह विशेष आलेख प्रकाशित हुआ है। आलेख ‘इरफ़ान: वो कैमरे में झांक भर
राजस्थान साहित्य अकादमी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘मधुमती’ के ताज़ा मई 2020 अंक में अभिनेता इरफ़ान पर मेरा यह विशेष आलेख प्रकाशित हुआ है। आलेख ‘इरफ़ान: वो कैमरे में झांक भर
आज सत्यजित रे का जन्मदिन होता है. रे से मेरा या हमारा क्या ताल्लुक़? क्या केवल पाँच-सात फ़िल्में देखने के बाद हम किसी को एडमायर करने लग जाते हैं. या
बचपन में स्कूल में कभी शिवाजी और सिंहगढ़ के किले की लड़ाई के बारे में पढ़ा था। ‘गढ़ आया, पर सिंह गया’ वाली लाइन न जाने क्यों हमेशा याद रही।पर
दबंग, सलमान खान और प्रभुदेवा तीनों का ही ध्यान बना रहता है इस फिल्म को देखते हुए। प्रभुदेवा का सबसे पहले इसलिए कि वाण्टेड निर्देशित करके सलमान खान को बरसों
सांवली और स्याह रंगत वाली लड़कियों को गोरेपन की क्रीम बेचने वाला बाला (आयुष्मान खुराना) जब स्टेज पर अचानक यह कह उठता है कि हमें बदलना क्यूं है, तो सब
पहली बात, उजड़ा चमन और बाला दोनों ही गंजेपन पे आधारित पहली हिंदी फ़िल्म होने का दावा करते हैं, पर इस विषय पर पहली फ़िल्म ‘गॉन केश’ है जो मार्च
वो बिमल रॉय, असित सेन, ऋषिकेश मुखर्जी बासु, भट्टाचार्य की स्कूल की पैदाइश था। जिसका अपनी स्टोरी टेलिंग मेथड था। गीत लिखने आया लड़का, कहानियों से वाकिफ था। वो कहानियों
टेररिज्म, इंडियन बंधक, इंडियन इटेलेजेंस आदि में शोज और मूवीज की भरमार है इस समय। अभी कुछ दिन पहले प्राइम का ‘द फैमिली मैन’ आया था। अब और नेटलफिक्स का
एक ज़माना था जब हृषिकेश मुखर्जी, फारुख शेख़, अमोल पालेकर, दीप्ति नवल और उत्पल दत्त आदि की फिल्में बड़े बड़े नामों वाले एक्टर्स और डायरेक्टर्स की फिल्म्स के बावजूद अपनी
छिछोरे जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है ,एक हल्की-फुल्की फ़िल्म है पर एक गंभीर विषय पे। और अगर इसके डायरेक्टर ‘दंगल’ वाले नितेश तिवारी ना होते तो शायद इसे
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