समीक्षा

बदलना क्यूं है?

सांवली और स्याह रंगत वाली लड़कियों को गोरेपन की क्रीम बेचने वाला बाला (आयुष्मान खुराना) जब स्टेज पर अचानक यह कह उठता है कि हमें बदलना क्यूं है, तो सब

बाला- फ़िल्म समीक्षा

पहली बात, उजड़ा चमन और बाला दोनों ही गंजेपन पे आधारित पहली हिंदी फ़िल्म होने का दावा करते हैं, पर इस विषय पर पहली फ़िल्म ‘गॉन केश’ है जो मार्च

बार्ड ऑफ ब्लड – वेब सीरीज रिव्यु

टेररिज्म, इंडियन बंधक, इंडियन इटेलेजेंस आदि में शोज और मूवीज की भरमार है इस समय। अभी कुछ दिन पहले प्राइम का ‘द फैमिली मैन’ आया था। अब और नेटलफिक्स का

ड्रीम गर्ल

एक ज़माना था जब हृषिकेश मुखर्जी, फारुख शेख़, अमोल पालेकर, दीप्ति नवल और उत्पल दत्त आदि की फिल्में बड़े बड़े नामों वाले एक्टर्स और डायरेक्टर्स की फिल्म्स के बावजूद अपनी

छिछोरे

छिछोरे जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है ,एक हल्की-फुल्की फ़िल्म है पर एक गंभीर विषय पे। और अगर इसके डायरेक्टर ‘दंगल’ वाले नितेश तिवारी ना होते तो शायद इसे

मिशन मंगल

हमारी कंपनी के किसी भी प्रमोशनल वीडियो में, ऑफिस या एड की फोटोज से आप जानेंगे कि यहाँ जेंडर रेशियो पाँच महिलाओं पे एक पुरुष है, विकिपीडिया से आप जानेंगे

instagram: