हास्य-व्यंग्य

अपनी अपनी बीमारी – हरिशंकर परसाई

हम उनके पास चंदा माँगने गए थे। चंदे के पुराने अभ्यासी का चेहरा बोलता है। वे हमें भाँप गए। हम भी उन्हें भाँप गए। चंदा माँगनेवाले और देनेवाले एक-दूसरे के

गँजहों के गाँव का लोकतंत्र – श्रीलाल शुक्ल

तहसील का मुख्यालय होने के बावजूद शिवपालगंज इतना बड़ा गाँव न था कि उसे टाउन एरिया होने का हक मिलता। शिवपालगंज में एक गाँव-सभा थी और गाँववाले उसे गाँव-सभा ही

कुंती देवी का झोला – श्रीलाल शुक्ल

वसंत का प्रभात था। कहने की जरूरत नहीं कि सुहावना था। कविता की परंपरा में वह इसके अलावा और क्या-क्या था, यह कहने की तो बिल्कुल जरूरत नहीं। जो कहना

उमरावनगर में कुछ दिन – श्रीलाल शुक्ल

बकरी, मुर्गी, और फटी कमीजें बस में जहाँ मैं बैठा था, वहाँ बकरी न थी; मेरे पास बैठे आदमी की गोद में सिर्फ मुर्गी थी। बकरियाँ पीछे थी। उस भीड़‌-‌‌भक्कड़

अंगद का पाँव – श्रीलाल शुक्ल

वैसे तो मुझे स्टेशन जा कर लोगों को विदा देने का चलन नापसंद है, पर इस बार मुझे स्टेशन जाना पड़ा और मित्रों को विदा देनी पड़ी। इसके कई कारण

रेल यात्रा – शरद जोशी

रेल विभाग के मंत्री कहते हैं कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं। ठीक कहते हैं। रेलें हमेशा प्रगति करती हैं। वे बम्‍बई से प्रगति करती हुई दिल्‍ली

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