मेरी माँ कहाँ
दिन के बाद उसने चाँद-सितारे देखे हैं। अब तक वह कहाँ था? नीचे, नीचे, शायद बहुत नीचे…जहाँ की खाई इनसान के खून से भर गई थी। जहाँ उसके हाथ की
दिन के बाद उसने चाँद-सितारे देखे हैं। अब तक वह कहाँ था? नीचे, नीचे, शायद बहुत नीचे…जहाँ की खाई इनसान के खून से भर गई थी। जहाँ उसके हाथ की
जिन्दगी कभी-कभी जख्मी चीते की तरह छलाँग लगाती दौड़ती है, और जगह जगह अपने पंजों के निशान छोड़ती जाती है। जरा इन निशानों को एक लकीर से जोड़ के देखिए
बात सुलगी तो बहुत धीरे से थी, लेकिन देखते ही देखते पूरे कस्बे में ‘धुआँ’ भर गया। चौधरी की मौत सुबह चार बजे हुई थी। सात बजे तक चौधराइन ने
इधर से मुस्लमान और उधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिन में ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई
‘क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?’ बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के
”विमली! ए विमली!… एकदम्मै मर गई का रे…” जोर लगाते ही बुढ़िया को खाँसी आ जाती है। ”यह हरजाई तो खटिया पर गिरते ही मर जाती है।” – बुढ़िया खटिया
रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आयी है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभाव है। वृक्षों पर अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ
By subscribing to our newsletter you agree to our Terms and Conditions and Privacy Policy