कथा

ठंडा गोश्त

ईशर सिंह जूंही होटल के कमरे में दाख़िल हुआ। कुलवंत कौर पलंग पर से उठी। अपनी तेज़ तेज़ आँखों से उसकी तरफ़ घूर के देखा और दरवाज़े की चटख़्नी बंद

दो आदमी पुराने

कुछ दिन हुए, रामानंदजी और राकेशजी अपने-अपने पेशे से रिटायर हो कर सिविल लाइन्स में बस गए थे। अपने यहाँ का चलन है कि रिटायर होने के बाद और इस

अपनी अपनी बीमारी – हरिशंकर परसाई

हम उनके पास चंदा माँगने गए थे। चंदे के पुराने अभ्यासी का चेहरा बोलता है। वे हमें भाँप गए। हम भी उन्हें भाँप गए। चंदा माँगनेवाले और देनेवाले एक-दूसरे के

केशर-कस्तूरी – शिवमूर्ति

“पापा, आपके ए.सी. साहब आए हैं।” बेबी ने कमरे में घुसते हुए सूचित किया। मैं चौंक गया। पूछा – ”कहाँ हैं?” “बाहर सड़क पर। जीप में ही बैठे हैं।” ‘”अरे

मेरा दुश्मन – कृष्ण बलदेव वैद

वह इस समय दूसरे कमरे में बेहोश पड़ा है। आज मैंने उसकी शराब में कोई चीज मिला दी थी कि खाली शराब वह शरबत की तरह गट-गट पी जाता है

ख्वाजा, ओ मेरे पीर! – शिवमूर्ति

माधोपुर से शिवगढ़ तक सड़क पास हो गयी। तो सरकार ने आखिर मान ही लिया कि ऊसर जंगल का यह इलाका भी हिन्दुस्तान का ही हिस्सा है। पिछले पचास बरस

गँजहों के गाँव का लोकतंत्र – श्रीलाल शुक्ल

तहसील का मुख्यालय होने के बावजूद शिवपालगंज इतना बड़ा गाँव न था कि उसे टाउन एरिया होने का हक मिलता। शिवपालगंज में एक गाँव-सभा थी और गाँववाले उसे गाँव-सभा ही

कुंती देवी का झोला – श्रीलाल शुक्ल

वसंत का प्रभात था। कहने की जरूरत नहीं कि सुहावना था। कविता की परंपरा में वह इसके अलावा और क्या-क्या था, यह कहने की तो बिल्कुल जरूरत नहीं। जो कहना

उमरावनगर में कुछ दिन – श्रीलाल शुक्ल

बकरी, मुर्गी, और फटी कमीजें बस में जहाँ मैं बैठा था, वहाँ बकरी न थी; मेरे पास बैठे आदमी की गोद में सिर्फ मुर्गी थी। बकरियाँ पीछे थी। उस भीड़‌-‌‌भक्कड़

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