लगने लगा है जैसे
मेरी चेतना का कोई पिण्ड
स्थापित हो गया है
ब्रह्मांड में पाए जाने वाले
कृष्ण विवर के निकट कहीं।
जहाँ समय की गति
अत्यधिक मन्द है
शेष जगत से।
समग्र सृष्टि बढ़ रही है
नए युग को
और मैं वहीँ अटक गई हूँ
विलग होने के क्षण में।
किसी बीत चुके सृजनकर्ता
के स्वप्न सी
मैं अंकित कर दी जाऊँगी
उन नामों के मध्य जो
इतिहास में निकले थे
भविष्य खोजने।
बनकर महत्वकांक्षा के
खंडित अवशेष
अंतरिक्ष में असंख्य उपग्रहों के
जीर्ण पुर्जों की भांति
खाती रहूँगी थपेड़े
व्यर्थ व दिशाहीन।
जब तक कोई जीवट जिज्ञासु
खींच नहीं लेता मुझे
विवर में गिरने से पहले
हज़ारों प्रकाश वर्ष पाटकर।
‘Krishna Vivar’ A Hindi Poem By Kirti Gurjar