मर के भी अमर रहते हैं सच्चाई के लिए लड़ने वाले


Notice: Trying to access array offset on value of type bool in /home/u883453746/domains/hindagi.com/public_html/wp-content/plugins/elementor-pro/modules/dynamic-tags/tags/post-featured-image.php on line 36
तुम मरे नही हो, ललित मेहता
मरा नहीं है तुम्हारा ज़मीर
तुम्हारी ईमानदारी की पुकार जनता के बीच
गूँजती रहेगी हमेशा सदियों तक ।

तुम्हारी क़ब्र की दरारों से
आवाज़ें आती रहेंगी और हमें बुलाती रहेंगी
और लहू के कतरे जो ज़मीन पर गिरे
उनसे प्रस्फुटित होंगे हज़ारों-हज़ार ललित मेहता
इससे पहले भी इस धरती पर कई योद्धाओं ने
देश की ख़ातिर कुरबानी दी,
उसी के लहू के कतरों से
तुम जैसे संघर्षरत योद्धा अंकुरित हुए
और आगे भी अंकुरित होते रहेंगे ।

तुम्हारा लहू जहाँ गिरे वहाँ से पेड़ भी जनमेंगे तो
तुम्हारी शक्लों में दिखेंगे और
चीख़ेंगे व्यवस्था के विरुद्ध,
तुम्हारी हत्या साबित करती है कि
सच बोलने वाले ऐसे ही मार दिए जाते हैं
उनको जीतने से पहले हरा दिया जाता है
मार दिया जाता है ज़िन्द रहने से पहले
पर इतिहास गवाह ऎसे लोग मरते नहीं कभी
ज़िन्दा रहते हैं मरकर भी ।

ठीक वैसे ही तुम भी रहोगे ज़िन्दा
यहाँ की आबोहवा में
एक-एक मनुष्य की स्मृतियों में और
हमेशा-हमेशा के लिए ज़िन्दा रहोगे
इतिहास के पन्नों में…।

Related

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

सूखे फूल

जो पुष्प अपनी डाली पर ही सूखते हैं, वो सिर्फ एक जीवन नहीं जीते, वो जीते हैं कई जीवन एक साथ, और उनसे अनुबद्ध होती हैं, स्मृतियाँ कई पुष्पों की,

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: