नीहसो

विदा फ़ारुख़

बचपन में सेट मैक्स, ज़ी सिनेमा और स्टार टीवी पर दिखाई गई फिल्मों के कारण फ़ारुख़ शेख़ दिमाग में कुछ इस तरह बस गए थे कि अब स्मृति से छूटते

चंद ही रोज़ और फिर बदल जाएगी ज़िंदगी

उदास शहर की उदास खिड़की पर इन दिनों बेरुख़ी है नहीं उतरता उसकी ग्रिल पर चिड़िया का शोर चारों ओर फैले सुनसान में संगीतकार सुन नहीं पा रहा स्वर साधु

कह देने की ये कौन सी तड़प है ?

कह देने की ये कौन सी तड़प है ? क्यूँ केवल कह देने भर से मन नहीं भरता? क्यूँ ज़रूरी है इतना भरोसा कि सुना जा रहा है ? न

instagram: