gulzar

मुझको इतने से काम पे रख लो

मुझको इतने से काम पे रख लो जब भी सीने पे झूलता लॉकेट उल्टा हो जाए तो मैं हाथों से सीधा करता रहूँ उसको मुझको इतने से काम पे रख

बस तेरा नाम ही मुक़म्मल है: गुलज़ार

हिन्दी साहित्य और सिनेमा में जो हैसियत गुलज़ार साहब की है और रही, वैसी किसी की न थी। मतलब सीधा-सीधा कला में दखलंदाज़ी। यानि गीत, कविता, नज़्म, शायरी, कहानी, पटकथा,

उर्दू ज़बाँ

ये कैसा इश्क़ है उर्दू ज़बाँ का मज़ा घुलता है लफ़्ज़ों का ज़बाँ पर कि जैसे पान में महँगा क़िमाम घुलता है ये कैसा इश्क़ है उर्दू ज़बाँ का नशा

हमारे यहाँ भी एक शख्स है “गुलज़ार”

वो बिमल रॉय, असित सेन, ऋषिकेश मुखर्जी बासु, भट्टाचार्य की स्कूल की पैदाइश था। जिसका अपनी स्टोरी टेलिंग मेथड था। गीत लिखने आया लड़का, कहानियों से वाकिफ था। वो कहानियों

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