मकड़ी
अक्सर सुलगने लगती हैं मेरी उंगलियाँ सिगरेट की तरह कुछ स्पर्श धुआं बनकर मेरी आंखों के नीचे बैठ जाते हैं फिर इस काई पर रातें फिसलती रहती हैं फिसलती रहती
अक्सर सुलगने लगती हैं मेरी उंगलियाँ सिगरेट की तरह कुछ स्पर्श धुआं बनकर मेरी आंखों के नीचे बैठ जाते हैं फिर इस काई पर रातें फिसलती रहती हैं फिसलती रहती
शाम होते ही लौटना था पर रात गिर आई रात कुछ उस तरह गिरी मेरे सामने जैसे सड़क पर गिर पड़ा हो पेड़ रात को कभी मैंने इस तरह गिरते
आसमान के घर से एक बड़ा सा पत्थर मोहल्ले के बीचों -बीच गिरा देखते ही देखते वह शीर्ष मंच पर आसीन हो गया औरतें जो साहसी सड़कें बनकर चल रही
किशोरवय बेटा पूछता है अक्सर! कैसे देख लेती हो बिन देखे कैसे सुन लेती हो परिधि के बाहर कैसे झाँक लेती हो मेरे भीतर पिता तो देखकर भी अनदेखा सुनकर
घनघोर काली घटायें उमड़ घुमड़कर छा रहीं थी बस बारिश होने को थी स्त्रियों ने रोका बारिशों को स्वजनों के नियत स्थलों में पहुँचने तक कभी रोका उसे डोरी पर
मैं तुम्हें आब से चीन्हती हूँ तुम मुझे मेरी करुणा से दोआब पर बैठे हम शांत समय में संगम पर पाँव पखारते हैं जब टूटकर बिखरते हैं तुम्हारे आसूँ छलक
एक पीली खिड़की इस तरह खुलती है जैसे खुल रही हों किसी फूल की पंखुड़ियाँ। एक चिडि़या पिंजरे की सलाखों को ऐसे कुतरती है जैसे चुग रही हो अपने ही
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