hindi poetry books

पृथ्वी की उथल पुथल

प्रतीत होता है मैंने निगल ली है एक समूची पृथ्वी जिसके झरनें बह रहे हैं मेरी रक्तकणिकाओं में जिसके पेड़ उग रहे हैं असंख्य भाव रूपी, जिसके पुष्प खिल रहे

मुर्दा भीड़ का संताप

रोशनी उतर आयी है पेड़ों के ऊपर से नीचे घास पर मेरे तलवों से मेरे ख़ून रिसते होंठों पर, मैं महसूस कर रही हूँ सैकड़ों कीड़े घिसट रहे हैं मेरी

बीमार समय में

एक बूढ़ा सियार हुआँ हुआँ का शोर मचाता है पीछे से लाखों सियार जयकार लगाते हैं छद्म वेश में जो सियारों में शामिल नहीं हैं उनके लिए हस्ताक्षरित सियारी खाल

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