फिर से साँझ ने पहनी है
तांत की साड़ी
अपने कमरबन्द में
हरसिंगार का गुच्छा लटकाए
साड़ी के पल्लू के कोने पर
उसने बांध दिया है
पृथ्वी का नीला साम्राज्य
मैं अपने माथे के कुमकुम में
जन्म लेती हुई तुम्हारी स्त्री
मेरे अधखुले नेत्रों में विस्तृत आकाश
टपकाता है दो सितारें
सोचती हूँ कितना सौंदर्य छुपा है
तुम्हारी नींद में
मैं भरती हूँ स्वप्नों का गुल्लक किताबों से
एक बर्फ़ का फूल धूप से बिछड़कर
मेरी हथेली पर ठहरता है
बर्फ़ उदासी बटोरता है
मृत्यु जीवन से अपने होने का प्रमाण माँगती है
मैं सँवारती हूँ अपने लंबे केश
पतझड़ गिरा देता है
जीवन के पेड़ का आख़िरी पत्ता
अँधेरा भारी पड़ रहा है पूरे शहर के बदन पर
रोशनी कोमल है आत्मा की तरह।
‘Tumhari Neend Aur Sanjh’ A Hindi Poem by Nandita Sarkar