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अठहत्तर दिन
अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति
गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

सेपियंस: मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास
इंसान के पास ऐसा क्या है जिसके नाम पर वह स्वयं को धरती का सबसे श्रेष्ठ प्राणी मानता है। यहाँ तक कि आने वाले साइबोर्ग और ऐंड्रायड को भी अपने

सूखे फूल
जो पुष्प अपनी डाली पर ही सूखते हैं, वो सिर्फ एक जीवन नहीं जीते, वो जीते हैं कई जीवन एक साथ, और उनसे अनुबद्ध होती हैं, स्मृतियाँ कई पुष्पों की,

लौटना
जो गये, उन्हें लौट आना चाहिए, लौटने से जीवन होता है परिष्कृत, व्यथन के मेघ अनाच्छादित होते हैं, और विषण्णता होती है लुप्त। क्योंकि लौटना संगम है दुःखों का, और

पैंतीस बरस का जंगल
उम्र की रौ बदल गई शायद, हम से आगे निकल गई शायद। – वामिक़ जौनपुरी “इतनी लंबी उम्र क्या अकेले गुज़ारोगी? दुनिया क्या कहेगी?” यही सवाल उसकी खिड़की पर टँगे

बथुवे जैसी लड़कियाँ
वे लड़कियाँ बथुआ की तरह उगी थीं जैसे गेहूँ के साथ बथुआ बिन रोपे ही उग आता है ठीक इसी तरह कुछ घरों में बेटियाँ बेटों की चाह में अनचाहे

सही-सही वजह
किसी के प्रेम में पड़ जाने की सही-सही वजह नहीं बता पातीं कभी भी स्त्रियाँ, जबकि पुरुषों के पास होते हैं एक सौ एक कारण स्त्रियों के पास अपने प्रेम

दिसम्बर
मुझे याद हो तुम जाते हुए और इस तरह जाते हुए की मुड़ने की ज़हमत नही की गई। एक बार तो देखना बनता था ना मुझे पत्थर बनते हुए। मैं