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बरसात के यही दिन थे। खिड़की के बाहर पीपल के पत्ते इसी तरह नहा रहे थे। सागवान के इस स्प्रिंगदार पलंग पर जो अब खिड़की के पास से थोड़ा इधर
बरसात के यही दिन थे। खिड़की के बाहर पीपल के पत्ते इसी तरह नहा रहे थे। सागवान के इस स्प्रिंगदार पलंग पर जो अब खिड़की के पास से थोड़ा इधर
बहुत पहले मैं एक लड़की को जानता था। वह दिन-भर पार्क में खेलती थी। उस पार्क में बहुत-से पेड़ थे, जिनमें मैं बहुत कम को पहचानता था। मैं सारा दिन
“आ भी जा आ भी जाए सुबह आ भी जारात को कर विदादिलरुबा आ भी जा… sabahat-afreen
खाली हाथ? मेरी आँखें अनायास अपने हाथों पर झुक आईं – वे सचमुच खाली थे। वह अब यहाँ नहीं है – मैंने कहा, – किंतु न जाने क्यों, इस बार
साल याद नहीं आ रहा, ग्रेजुएशन के दौरान की बात है शायद……. आसमान ने अपने सारे बांध खोल लिए हैं और रह- रहकर तेज गर्जना के साथ बारिश हो रही
~1~ बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गाँव के जमींदार और नम्बरदार थे। उनके पितामह किसी समय बड़े धन-धान्य संपन्न थे। गाँव का पक्का तालाब और मंदिर जिनकी अब मरम्मत भी मुश्किल
“मम्मा.. तुमने मेरे सामान को फिर हाथ लगाया। क्या खोजती रहती हो तुम मेरे सामान में, मेरी डायरी में? जासूसी कर रही हो क्या मेरी? इसके पहले भी तुम रात
– एक – जुम्मन शेख अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था।
“हाँ मुरब्बा है, अचार है, नमकपारे हैं खस्ता है, ये लो, नाश्तेदान का एक डब्बा तो ख़ाली है। दुल्हनsss किधर हो, ज़रा हुजरे से बाहर आओ।” सुरैया बेगम ने पान
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