लोरी


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“मम्मा.. तुमने मेरे सामान को फिर हाथ लगाया। क्या खोजती रहती हो तुम मेरे सामान में, मेरी डायरी में? जासूसी कर रही हो क्या मेरी? इसके पहले भी तुम रात को चोरों की तरह मेरे सामान को देख चुकी हो। नाउ दिस इज इनफ़। हद है ये तो..” लोरी गुस्से में चीख रही थी।

सुपर्णा के हाथ नाश्ता लगाते लगाते रुक गए और वह फटी फटी आँखों से लोरी को देखने लगी।
“आइन्दा तुम मेरे सामान को कभी हाथ मत लगाना.. वरना मैं ताला बंद करके रखूंगी। बता दे रही हूँ।” लोरी गुस्से में कांप रही थी।
“तू सुन तो सही… पहले नाश्ता कर ले लोरी” सुपर्णा एकदम झेंप गयी थी मानो किसी ने चोरी करते हुए पकड़ लिया हो।
“नहीं करना मुझे नाश्ता…” लोरी एक झटके में तेज़ तेज़ क़दमों से बडबडाती हुई बाहर निकल गयी। सुपर्णा की आँखों से आंसू बह निकले।

ये क्या हो गया है लोरी को। पहले तो कभी इतनी बदतमीजी से बात नहीं करती थी। अभी कुछ महीनों से एकदम रिबेलियन चाइल्ड हो गयी है। अभी सिर्फ सोलह साल की ही तो है और माँ से इस कदर झुंझलाकर बात करना? क्या हो गया है इसे? एक माँ क्यों अपनी बेटी की जासूसी करेगी। वो तो केयर और परवाह है जो उसे बार बार देखने पर मजबूर कर देती है कि बेटी कहीं गलत राह पर तो नहीं जा रही? नाज़ुक उम्र है, कहीं इस उम्र में बहक गयी तो सब मुझे ही दोष देंगे। आज सुबोध होता तो इतनी चिंता न होती। अकेली माँ के लिए बच्चा पालना कितना कठिन होता है।

“ओह सुबोध… तुम क्यों चले गए। प्लीज़ कैसे भी आ जाओ। मुझे तुम्हारी बहुत ज़रूरत है।” सुपर्णा बिलखकर रो पड़ी। सामने दीवार पर एक फूलमाला के बीच फ्रेम में सुबोध सब चिंताओं से बेखबर मुस्कुरा रहा था। बहुत देर सुपर्णा उदास बैठी रही। नाश्ता टेबल पर रखा ठंडा होता रहा। अचानक घड़ी पर नज़र पड़ी तो देखा दस बजने वाले हैं। ठीक साढ़े दस बजे ऑफिस पहुंचना है। सुपर्णा फ़टाफ़ट तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गयी। ऑफिस में भी आज उसका मन नहीं लग रहा था। बार बार आंसू उमड़ते थे। कैसे बताये लोरी को कि उसके मन में क्या क्या चलता रहता है। आंसुओं और हताशा से जूझते हुए सुपर्णा अपनी फाइलें भी निपटाती जा रही थी। अचानक वाट्स एप पर लोरी का मैसेज आया

“सॉरी मम्मा.. लव यू। मैंने केन्टीन में खा लिया है। आप लंच ज़रूर करना। बाय”
सुपर्णा की पलकों पे बहुत देर से ठहरा आंसू अचानक गालों पर लुढ़क चला। मन की दुनिया भी अजीब है। एक पल पहले जो आंसू हताशा और अवसाद में बह रहे थे, अब वही प्यार और निश्चिंतता के बनकर बह रहे थे।

शाम को सुपर्णा जब घर पहुंची तो भीतर लाईट जल रही थी। लोरी आ चुकी थी। रोज़ सुपर्णा ही पहले पहुँचती है। लोरी साढ़े सात बजे तक आती है हमेशा। घर के भीतर घुसते ही लेमनग्रास की भीनी खशबू ने सुपर्णा का स्वागत किया। एक कॉर्नर में कैंडल लेमनग्रास एसेंस के साथ जल रही थी। टेबल पर ताज़े रजनीगन्धा के फूल कांच के वास में लगे हुए थे। सारी खिड़कियाँ खुली हुई थीं और नवम्बर की गुलाबी सर्दीली हवा कमरे में भरी हुई थी और धीमी आवाज़ में मेंहदी हसन की ग़ज़लें बज रही थीं।

गुलों में रंग भरे बादे नौ बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

कमरे में घुसते ही सुपर्णा का मन एकदम तरोताज़ा हो गया।”मम्मा को मनाने के लिए है ये सब तरकीबें। सच में मेरे जैसी प्यारी बेटी किसी के पास नहीं।” सुपर्णा का मन फिर से भीग उठा।

“मम्मा.. हाथ मुंह धोकर आओ जल्दी। चाय तैयार है” लोरी की आवाज़ आई तो सुपर्णा जल्दी से वाशरूम की ओर भागी।
पांच मिनिट बाद जब वापस लौटी तो टेबल पर चाय के साथ मैड एंगल्स और बिस्किट्स भी तैयार थे। चाय पीते पीते लोरी अपने दिन भर का लेखा-जोखा सुपर्णा को सुनाने लगी मानो कुछ हुआ ही न हो। बच्चे सचमुच कितने सहज और निर्मल होते हैं। ये तो हम हैं जो एक बात को कलेजे से बिन्धाकर रख लेते हैं और दिनरात घुलते रहते हैं। सुपर्णा को खुद पर गुस्सा और शर्म भी आ रही थी। क्या ज़रूरत थी उसे लोरी की डायरी पढने की। इतनी प्यारी बेटी पर क्यों उसे भरोसा नहीं होता।

“लोरी लुक… आय एम सॉरी बेटू” सुपर्णा की आखें फिर छलछला आयीं।
लोरी लपककर आई और मम्मा के गले लग गई।
“प्लीज़ मम्मा… डोंट से सॉरी।” लोरी का स्वर भी रुआंसा हो चला था।
“लोरी.. मेरी पुच्चू। मैं डर गयी थी। कल मेरे ऑफिस में एक कर्मचारी की बेटी किसी लड़के के साथ चली गयी। केवल पन्द्रह साल की लड़की। अभी तक वापस नहीं आई। बस एक चार लाइन का ख़त लिखा और चली गयी। सब बेहद परेशान हैं। मैं कभी कभी बहुत डर जाती हूँ लोरी। बस इसलिए…”

“मम्मा.. आपकी लोरी कहीं नहीं भागेगी। चिंता मत करो। अगर कभी भाग भी गयी तो अगला बन्दा खुद दो घंटे में घर छोड़ जाएगा। कोई नहीं झेल सकता मुझे सिवाय मेरी मम्मा के” लोरी ठहाका मारकर हंस पड़ी।
सुपर्णा भी हंस पड़ी लोरी के साथ साथ। माँ बेटी की इस हंसी ने घर के मौसम को सुहाना बना दिया। माँ बेटी के ठीक पीछे सुबोध मुस्कुरा रहा था। परिवार अभी पूरा था, खुश था।

रात को देर तक सुपर्णा लोरी के बारे में सोचती रही। लोरी पांच साल की थी जब सुबोध की एक एक्सीडेंट में डैथ हो गयी थी। तब से लोरी को उसने अकेले बड़ा किया है। कभी कोई कमी नहीं रखी। वह खुद अच्छी सरकारी नौकरी में थी तो आर्थिक दिक्कत कभी नहीं हुई। लोरी बहुत खुशमिजाज़ बच्ची थी। पढ़ाई में अबव एवरेज लेकिन गिटार में मास्टर। दस साल की उम्र से लोरी गिटार बजा रही है। जब रात की ठंडी हवा में छत पर लोरी सुपर्णा के फेवरिट पुराने गाने गिटार पर बजाती है तो वो सुपर्णा की जिंदगी के सबसे प्यारे पल होते हैं। ‘लोरी की उँगलियों में जादू है सचमुच। लोरी शायद बड़ी होकर बहुत अच्छी गिटारिस्ट बने या शायद पेंटर।’ सुपर्णा अक्सर सोचा करती।

सुपर्णा ने लोरी को कभी क्लास में फर्स्ट आने के लिए मजबूर नहीं किया। लोरी इस बात के लिए अपनी मम्मा की बहुत कायल है। अक्सर अपने दोस्तों को जब हाई परसेंटेज आने पर भी सर झुकाए डांट खाते देखती तो सुपर्णा को घर आकर थेंकयू बोलती।
“मम्मा.. पता है, आप सबसे प्यारी मम्मा हो। आपको पता है कि दिनरात भी पढूं तो भी मैं क्लास में फर्स्ट नहीं आ सकती। आप मुझे नम्बरों के लिए कभी ताने नहीं मारे, कभी बगल वाले पिंकू के मार्क्स से मेरा कम्पेरिजन नहीं किया। काश आप मेरे दोस्तों की भी मम्मा होतीं”

“पगली… अब ज्यादा मस्का मत लगा। डांटती नहीं, इसका मतलब ये नहीं कि तू बिलकुल ही पढ़ाई न करे” सुपर्णा नकली गुस्से से लोरी के गाल पर हल्की चपत लगाती। लोरी गुनगुनाते हुए अपने कमरे में चली जाती और सुपर्णा देर तक लाड़ में भरी बैठी रहती।
यही लोरी पिछले एक साल से अजीब सा व्यवहार करने लगी है। वाट्स एप पर चैट करते करते अगर सुपर्णा पहुँच जाए तो हथेलियों से स्क्रीन छुपा लेती है। मम्मा के लिए अब उसके पास ज्यादा समय नहीं है। या तो दोस्तों से मोबाइल पर बात करती रहती है या कानों में हेडफोन लगाए म्युज़िक सुनती रहती है। ज्यादा समय आईने के सामने बिताती है। तरह तरह के फेसपैक, लिपस्टिक और जाने क्या क्या। रोकने टोकने पर एकदम गुस्सा हो जाती है। ये कोई उम्र है इन सब बातों में समय गंवाने की? अभी करियर बनाने का टाइम है… बाद में जो चाहे सो करे। जिंदगी भर थोड़े ही टोकेगी मम्मा। अकसर ही दोनों के बीच तकरार हो जाया करती है। बहस बढ़ जाती तो लोरी अपने कमरे में जाकर बंद हो जाती। सुपर्णा अपने कमरे में परेशान बैठी रहती।

“शायद जनरेशन गैप है जो मैं उसकी उम्र के इस व्यवहार को समझ नहीं पा रही हूँ” एक दिन सुपर्णा अपनी सहेली जान्हवी से सारी बातें शेयर कर रही थी।

“क्या करूं? कैसे उसके मन की बात समझूं?”

“उसके मन की बात समझने के लिए तुझे कुछ नहीं करना है। बस अपने उस दौर को याद करना है जब तू सोलह की थी। याद कर हम कैसे घर से भागकर सारी दोपहर उस इमली के पेड़ के नीचे बैठे रहते थे। कितनी सारी बातें, कितने किस्से हुए करते थे हमारे पास। कौन किसको ताकता है, कौन किसके पीछे साइकल से स्कूल तक जाता है, किसकी स्कर्ट पर क्लास से उठते हुए ग्रहण का लाल चाँद उग आया था …और याद है वो घुंघराले बालों वाला लड़का जो तेरे पीछे दीवाना था और तू भी कुछ कम दीवानी नहीं थी उसके पीछे। तेरे घर के सामने उसका स्कूटर से हॉर्न बजाते हुए निकलना और तेरा भागकर बरामदे में आना। याद है.. आंटी ने भांप लिया था और तुझे टोक दिया था। कितना चिढ़ी थी तू आंटी के ऊपर। बाज़ार से नयी नयी चूड़ियाँ, बिंदी और हेयर क्लिप्स लाकर घर भर दिया करते थे। चोरी चोरी माँ की लिपस्टिक लगाया करते थे।”

“क्या क्या बातें याद दिला रही है तू आज… वो भी क्या अल्हड़ बेफिक्री के दिन थे। कैसे गुज़र गए पलक झपकते”
“यही अल्हड दिन लोरी के चल रहे हैं सुपर्णा… बस यही बता रही थी तुझे” जान्हवी के चेहरे पर एक नटखट मुस्कराहट थी।
“हाँ.. इस तरह से तो मैंने सोचा ही नहीं। ये जनरेशन गैप नहीं है। उम्र के अलग अलग पडावों की अलग अलग जरूरतें हैं, अलग अलग धडकनें हैं जो अपनी रिदम में धडक रही हैं। शुक्रिया यार जान्हवी…” सुपर्णा को जैसे एक नयी राह नज़र आने लगी थी।
अगली सुबह रविवार की एक बेहद सुन्दर सुबह थी। सुपर्णा ने आज कुछ निश्चय किया था।
“लोरी.. आज दोपहर को हम दोनों लंच करने कहीं बाहर चलते हैं। बहुत दिन से कहीं नहीं गए” नाश्ता करते हुए सुपर्णा ने बड़े प्यार से लोरी से कहा।

“नहीं मम्मा.. आज नहीं। आज मुझे बहुत ज़रूरी प्रोजेक्ट कम्प्लीट करना है। फिर किसी दिन चलते हैं।” लोरी ने आलू का परांठा खाते हुए जवाब दिया।

“ओके… एज यू विश” सुपर्णा थोड़ी उदास हो गयी थी।

“अरे हाँ.. मम्मा। अभी आप वॉक के लिए गयीं थीं तब मौसी का फोन आया था। आपको बुलाया है उन्होंने। बात कर लो उनसे” कहकर लोरी अपने कमरे में चली गयी और दो मिनिट बाद ही उसके गिटार पर कोई अंग्रेजी धुन का टुकड़ा बजने लगा। सुपर्णा अपनी बहन को फोन लगाने लगी। बहन ने उसे बुलाया था अभी दस बजे। आर्किटेक्ट आया था और वह अपने मकान की डिजाइन फाइनल करने से पहले सुपर्णा से राय लेना चाहती थी।

“ओके.. मैं आती हूँ दस बजे तक” सुपर्णा तैयार होने चली गयी। जब सुपर्णा तैयार होकर बाहर आई तो देखा मंगल काका खड़ा उसका इंतज़ार कर रहा था।

“मेमसाब… कल मैं जा रहा हूँ”
“ओह हाँ… मैं तो बिलकुल ही भूल गयी थी। आप जा रहे हो। कल मिलकर जाना काका।” कहकर सुपर्णा तेज़ तेज़ क़दमों से घर से बाहर निकल गयी। रास्ते भर वह मंगल के बारे में सोचती रही। मंगल काका पिछले अठारह सालों से इस घर में काम कर रहा था। जब वह शादी होकर आई थी तब सुबोध के घर की देखभाल करना, खाना बनाना सारे काम मंगल ही करता था। शादी के बाद भी मगल घर में ही बना रहा। घर के सदस्य की तरह ही था मंगल। दो महीने पहले ही मंगल का बेटा आया था। इंजीनियर हो गया है और अब पिता को अपने साथ रखना चाहता था। मंगल कल जा रहा है अपने बेटे के पास हमेशा के लिए। इधर उधर की चिंताओं में याद ही न रहा कि कल से मंगल काका नहीं आएगा। सुपर्णा का जी एकदम उदास हो गया। मंगल काका के बिना घर सूना हो जाएगा। कोई और उनकी कमी को पूरा नहीं कर सकेगा कभी। लोरी को तो बचपन से काका ने ही संभाला है। उसे भी थोड़ा बुरा तो लगेगा ही। लेकिन आजकल के बच्चे इन सब बातों के लिए इतने भावुक नहीं होते। यह भी अच्छा ही है। अभी वह काका के लिए एक अच्छा सा पेंट शर्ट लेकर आएगी लौटते हुए।

सुपर्णा जब बहन के घर से लौटी तो दोपहर का एक बज रहा था। घर का दरवाज़ा खुला था लेकिन घर में कोई नहीं था। उसने लोरी को आवाज़ लगाई लेकिन कोई जवाब नहीं आया। वह लोरी को पुकारती हुई उसके कमरे में पहुंची लेकिन लोरी कमरे में भी नहीं थी। तभी पीछे से लोरी आई और सुपर्णा की आँखों पर हाथ रख लिया।

“ये क्या कर रही है लोरी.. छोड़ मुझे” सुपर्णा हैरानी से उसकी हथेलियाँ हटाने की कोशिश करती हुई बोली।
“सरप्राइज़ है मम्मा आपके लिए…” लोरी चहक रही थी। आँखें बंद किये किये ही लोरी सुपर्णा को गार्डन में ले गयी और आँखें खोल दीं।
आँखें खुलते ही सुपर्णा की हैरत का ठिकाना न था। एक छोटा सा स्टेज बना हुआ था लॉन में। जिस पर तीन कुर्सियां लगी हुई थीं। एक कुर्सी पर नए कपड़ों में मंगल काका बैठे हुए थे। दूसरी कुर्सी पर काका का बेटा राहुल बैठा हुआ था। स्टेज के सामने कुछ कुर्सियां लगी थीं जिन पर मंगल काका के और लोरी के कॉलोनी के दोस्त बैठे हुए थे। लोरी ने सुपर्णा को स्टेज पर मंगल काका के बगल वाली कुर्सी पर बैठाया।

“आज हमारे प्यारे मंगल काका की फेयरवेल पार्टी है। आप सभी लोगों का स्वागत है।” लोरी ने माइक थामा हुआ था और स्पीच दे रही थी।

“मंगल काका.. आप मेरे सबसे प्यारे काका हो। आपके साथ बिताया एक एक पल मेरी मेमोरी में रहेगा। आप अपनी लोरी बिटिया को भूल तो नहीं जाओगे ना काका? वादा करो कि साल में एक बार मुझसे मिलने ज़रूर आओगे। राहुल भैया आपको भी प्रोमिस करना होगा कि आप काका को हर साल मुझसे मिलने भेजोगे।” कहते हुए लोरी रुआंसी हो उठी। मंगल काका भी भावुक होकर आंसू पोछने लगे और उठकर लोरी को गले लगाकर बोले”आउंगा बिटिया… ज़रूर आउंगा”

“आई लव यू काका” लोरी मंगल काका से चिपककर बच्चों की तरह रो रही थी। सुपर्णा और राहुल की आँखें भी भीग आयी थीं।
“अब मम्मा की बारी है” लोरी ने सुपर्णा को माइक पर इनवाईट किया।

“काका.. लोरी के पैदा होने से पहले से आप हमारे साथ हो। ऐसा लग रहा है जैसे कुछ छूट रहा हो इस घर से। लोरी और मैं आपको बहुत मिस करेंगे” कहते हुए सुपर्णा का गला भी भर आया था। वह इस तरह पहले कभी सबके सामने भावुक नहीं हुई थी लेकिन आज लोरी ने उसे भी अपने साथ साथ इमोशनल कर दिया था। स्पीच के बाद लोरी ने सुपर्णा के हाथों काका को कई गिफ्ट्स दिलवाए। कुछ किताबें, नए कपड़े, एक फोटो का कोलाज जिसमें लोरी और सुपर्णा के साथ काका की हंसती हुई फोटो और लोरी के बचपन की कई फोटो थीं जो काका के साथ थीं। इसके बाद गार्डन में ही बुफे का इंतजाम था। एक बहुत खूबसूरत फेयरवेल पार्टी लोरी ने अरेंज की थी।

जाते जाते राहुल सुपर्णा के पास आया था और बोला था”दीदी.. आप कितनी लकी हो। लोरी बहुत प्यारी बच्ची है।”

पार्टी ख़त्म होने के बाद लोरी अपना प्रोजेक्ट वर्क करने अपनी सहेली के घर चली गयी और सुपर्णा अपने कमरे में जाकर लेट गयी। सुपर्णा लोरी के बारे में ही सोच रही थी”ये लड़की बिलकुल समझ ही नहीं आती। इतनी भावुक है ये भीतर से, मुझे ही पता नहीं। आज काका के लिए जो इसने किया, मैं भी नहीं करती। हे भगवान.. इसका दिल इतना ही खूबसूरत बनाए रखना” सुपर्णा को गर्व हो आया अपनी बेटी पर। मैं उसे ठीक ही बड़ा कर रही हूँ। सुबोध अगर कहीं से देख रहा होगा तो खुश होगा। सुबोध की तरह ही कोमल और नेक दिल पाया है लोरी ने। कैसे एक पिल्ले की तकलीफ पर भी परेशान हो उठती है, चिड़ियों के लिए साल भर बिना नागा दाना पानी रखती है, गर्मी में आवाज़ लगाते सब्जी वालों को फ्रिज से ठंडा पानी लाकर पिलाती है। खुश रह मेरी प्यारी बच्ची… सुपर्णा मन ही मन बुदबुदा उठी।

“लेकिन इसके पास इतने पैसे कहाँ से आये… लगभग दस हज़ार रूपये खर्च हुए होंगे इस सब में। मुझसे तो मांगे नहीं। शायद पर्स से निकाल लिए होंगे..” सोचते सोचते सुपर्णा की आँख लग गयी। जब वह उठी तो शाम हो चुकी थी और लोरी घर आ चुकी थी।
लोरी आज अलग ही मूड में थी। सुपर्णा के उठने की आहट सुनकर उसके कमरे में आई और सुपर्णा के चादर में घुसकर उससे लिपट गयी। आज लोरी एकदम नन्ही लोरी की तरह बिहेव कर रही थी। जब वह बहुत लाड़ में आती है तो यूं ही छोटी बच्ची बनकर मम्मा के बिस्तर में घुसकर उनसे चिपककर लेट जाती है। सुपर्णा ने भी उसे बाहों में लपेट लिया।

“मेला मम्मा..” लोरी मस्ती में तुतला कर बोल रही थी, जैसे वह बचपन में बोला करती थी।
“मेरी लोली…” सुपर्णा ने भी तुतलाने की नक़ल की और दोनों बहुत जोर से हंस पडी।
“चल उठ.. चाय बनाती हूँ। तू हाथ मुंह धोकर कपड़े बदल”
थोड़ी देर बाद चाय पीते हुए लोरी बोली
“मम्मा.. आज डिनर डेट पर चलोगी मेरे साथ”
“हाँ ,हाँ .. क्यों नहीं। बड़ी ख़ुशी से” सुपर्णा खुश होकर बोली। वह खुद लोरी के साथ एक क्वालिटी टाइम बिताना चाह रही थी। ढेर सारी बातें थीं जो वह तसल्ली से लोरी के साथ करना चाह रही थी।

“मम्मा.. आज तुम अपनी पिंक वाली स्कर्ट पहनना। तुम बहुत सेक्सी दिखती हो उसमें” लोरी ने शरारत से कहा
“यस मदाम… जो आज्ञा” सुपर्णा झुककर सलाम की मुद्रा बनाते हुए खिलखिला उठी।

रात को दोनों एक ओपन एयर रेस्तौरेंट पहुंचे थे। सुपर्णा ने फूलों वाले सफ़ेद टॉप के साथ पिंक लॉन्ग स्कर्ट पहनी थी और कानों में बड़े बड़े इयर रिंग्स और चेहरे पर हल्का मेकअप। सुपर्णा की रंगत एकदम खिल आई थी। कोई नहीं कह सकता था कि वह एक सत्रह साल की बच्ची की माँ है। सुपर्णा इस मार्च में 45 साल की हो जायेगी। लेकिन इस वक्त वह बमुश्किल तीस बत्तीस की दिखाई दे रही थी। और लेमन यलो कलर के स्लीवलेस टॉप के साथ ब्लैक मिनी स्कर्ट पहने हुए , खुले लम्बे घुंघराले बालों और कानों में छोटे छोटे डायमंड स्टड डाले हुए स्लिम लोरी गज़ब की खूबसूरत लग रही थी। उसे देख एक पल सुपर्णा सोच बैठी” इस पर तो इसके स्कूल के कितने लड़के फ़िदा हो जाते होंगे। क्या इसे भी कोई पसंद होगा ?” सुपर्णा अपनी ही सोच पर मुस्कुरा उठी।माँ बेटी हाथों में हाथ डाल रेस्तरां में पहुँचीं। वेन्यु लोरी ने ही सिलेक्ट किया था। शहर के सबसे अच्छे एम्बियेंस वाला रेस्तरां था ये। पूल साइड बुफे और लाइव ग़ज़लें। सुपर्णा और लोरी दोनों खाने के दौरान खूब गप्पें मारते रहे। जब बिल आया तो सुपर्णा ने अपना कार्ड निकाला लेकिन लोरी ने उसे तुरंत रोक दिया” ना , मम्मा .. ये मेरी डेट है। बिल मैं पे करुँगी”
सुपर्णा मुस्कुरा दी। पैसे तो एक ही हैं , मैं करूँ चाहे ये करे। क्या फर्क पड़ता है।

लोरी ने खाने का बिल पे किया और दोनों बाहर निकल आये। सुपर्णा कार स्टार्ट करते हुए बोली” कितना प्यारा मौसम है लोरी। अगर तुझे नींद न आ रही हो तो थोड़ी देर झील के किनारे वॉक करते हैं।”

लोरी मान गयी और सुपर्णा ने कार झील के किनारे लाकर पार्क कर दी। रात के ग्यारह बजे थे और झील एकदम शांत थी। सिर्फ इक्का दुक्का लोग टहल रहे थे। झील के किनारे पानी में ढेर सारी बतखें तैर रही थीं और तट से टकराती लहरों की आवाज़ कानों में एक सुकून घोल रही थी। लोरी और सुपर्णा धीमे धीमे टहलने लगे।

“एक बात पूछूं लोरी …”
“हाँ मम्मा …पूछो ना”
“तुझे कोई लड़का पसंद है क्या … मतलब कोई ख़ास दोस्त ? कहते हुए सुपर्णा खुद ही हिचक गयी थी। अभी तक कभी इस बारे में उसने लोरी से खुलकर बात नहीं की थी मगर अब वह अपने और लोरी के बीच के गैप को भरना चाहती थी।
“नहीं मम्मा … ख़ास तो कोई नहीं। हाँ दोस्त बहुत सारे हैं” लोरी ने बड़ी सहजता से जवाब दिया।
“पता है जब मैं बारहवीं में पढ़ती थी तब एक लड़का मुझे अच्छा लगा करता था …”
“वाओ मम्मा … फिर क्या हुआ बताओ ना” लोरी ने एक सुखद आश्चर्य से पूछा।
“कुछ नहीं .. वो स्कूटर से सामने से निकला करता था और उसके हॉर्न पर मैं बरामदे में दौड़ी चली आती थी। हम मिले कभी नहीं। तेरी

नानी को कुछ महसूस हो गया और उन्होंने मेरा बरामदे में आना बंद करवा दिया। फिर कुछ दिन बाद उस लड़के ने भी आना बंद कर दिया। कुछ दिनों में मेरे मन से भी वो लड़का निकल गया। तब मैं समझी कि ये प्यार नहीं था , केवल आकर्षण था जो इस उम्र में हो जाया करता है।”

“आपको किसी से प्यार नहीं हुआ मम्मा ..?” लोरी अब बड़ों की तरह गंभीर नज़र आ रही थी।
“हुआ था… तेरे पापा से। हम लोग चार साल मिलते रहे। फिर शादी कर ली।”
“मम्मा.. आपको पापा की बहुत याद आती होगी ना?” लोरी के हाथ का दबाव सुपर्णा ने अपने हाथ पर महसूस किया।
“हाँ.. बहुत आती है लेकिन अब उतनी परेशानी नहीं होती। वो तो हमेशा मन में हैं हैं और अब तो तू जो है मेरे साथ।” सुपर्णा प्रेम भीगे स्वर में बोली।

“मम्मा .. क्या मैं अपने लड़के दोस्तों को घर लाकर उनके साथ टाइम बिता सकती हूँ। अभी हम लोग बाहर केन्टीन में या स्कूल में मिलते हैं। एक दो बार वो घर आये तो मुझे लगा कि शायद आपको उनका आना पसंद नहीं इसलिए फिर कभी नहीं लायी उन्हें घर। लोरी भी अब खुल रही थी।

सुपर्णा को याद आया कि मानस और अम्बर एक दो बार आये थे और ज्यादा देर बैठ गए थे तो सुपर्णा भी उन लोगों के साथ जाकर बैठी रही थी।

“तो इसीलिए उसके बाद कभी दो चार मिनिट से ज्यादा के लिए लोरी के दोस्त नहीं आये घर”
उसे झेंप हो आई अपने व्यवहार पर।
“हाँ ज़रूर .. बिलकुल घर ला सकती हो तुम अपने दोस्तों को। उन्हें अपने कमरे में भी ले जा सकती हो , उनके साथ बैठकर स्टडी कर सकती हो। दोस्त तो दोस्त होते हैं। लड़का या लड़की नहीं।बस इतना ध्यान रखना कि कोई तुम्हारे खुलेपन का गलत फायदा न उठाये। दोस्ती की सीमा कभी किसी को पार मत करने देना।”

“ये तो केवल दोस्त हैं लेकिन अगर कभी कोई ख़ास दोस्त हुआ तो भी क्या उसको मैं घर ला सकुंगी?”
हाँ, क्यों नहीं.।उस ख़ास दोस्त को भी घर लेकर आना लेकिन दो तीन साल और रुक जाओ इस ख़ास दोस्ती के लिए। बीस के बाद तुम जिसे चुनोगी वह सचमुच ख़ास होगा। और अगर अभी कोई अच्छा लगने लगे तो हमेशा ध्यान रखना कि ये दोस्ती तुम्हारा दिल नहीं तुम्हारी उम्र करवा रही है। इस फीलिंग को एन्जॉय करना लेकिन किसी के साथ अभी इन्वॉल्व नहीं होना। मैं चाहती हूँ मेरी बेटी जिसे चुने वो उसका उम्र भर का साथी बने।” सुपर्णा लोरी का हाथ थामे बोल रही थी।

“जब कोई होगा मम्मा तो सबसे पहले तुमको बताउंगी। असली वाले खास के बारे में भी और अभी बीस साल से पहले जो ख़ास लगेंगे उनके बारे में भी.. जेंटलगर्ल प्रोमिस।” लोरी सुपर्णा के कन्धों पर हाथ रखती हुई हंसती हुई बोली।

इस आधे घंटी की बातचीत से सुपर्णा के मन से एक भारी बोझ मानो हट गया। वह खामखाँ परेशान हो रही थी।लोरी इतनी नादान भी नहीं है। बस उसे समझने और ठीक से समझाने की ज़रूरत थी। उसने लोरी पर नज़र रखकर , उसकी जासूसी कर उसे नियंत्रित करना चाहा लेकिन वह बड़ा खराब तरीका था। किशोर उम्र के बच्चों की एक निजता होती है , उनका अपना सेल्फ रिस्पेक्ट होता है १ अगर हम उसका सम्मान नहीं करेंगे तो वे अपनी जिंदगी में हमें घुसने भी नहीं देंगे।अब उसे यकीन हो गया था कि लोरी के मन तक वह उसकी दोस्त बनकर ही पहुँच सकती है। बल्कि लोरी जिस तरह से उसे हर बार हैरान कर देती है उससे साफ़ लगता है कि लोरी से उसे भी कितना कुछ सीखने की ज़रूरत है। आज मंगल काका के लिए पार्टी देकर तो लोरी ने उसे अभिभूत कर दिया। हम बड़े होकर ये सब क्यों नहीं सोच पाते ? बच्चों का कोमल और निश्छल मन कितना परफेक्ट रिश्ता है ये। वह लोरी को बड़ा कर रही है और लोरी उसे बच्चा कर रही है।

“मम्मा … एक बात बताऊँ ?” लोरी की आवाज़ से उसका ध्यान टूटा।
हाँ..बोलो
मम्मा… मैंने आपको बताया नहीं था। पिछले एक साल से मैं रोज़ शाम को मिहिका के घर गिटार ट्यूशन दे रही हूँ। पांच बच्चे सीखते हैं मुझसे। दस हज़ार रूपये हर महीने कमा रही हूँ। उन्हीं पैसों से आज काका की पार्टी का खर्चा किया और उन्हीं से होटल का बिल पे किया।”

सुपर्णा हतप्रभ थी।”क्यों.. आखिर ऐसी क्या ज़रूरत आ गयी ? क्या तुझे किसी चीज़ में कोई कमी महसूस हुई लोरी ? सुपर्णा आहत स्वर में बोली।

“ना मम्मा… कैसी बातें करती हो ? दुखी न हो प्लीज़।मेरे पास खाली समय था और मैं अपना जेबखर्च खुद कमाना चाहती थी। जैसे विदेशों में बच्चे छुट्टियों में और अपने खाली समय में काम करते हैं वैसे। आपके होते तो कोई कमी हो ही नहीं सकती मुझे। अगर नहीं कमाया होता तो आपको डेट पर ले जाने के लिए मुझे अभी न जाने कितने साल इंतज़ार करना पड़ता। मैं वैसे भी गिटार तो बजाती ही हूँ। वही तो किया मैंने बस।” लोरी ने सुपर्णा को झील किनारे बेंच पर बिठाते हुए कहा।
सुपर्णा ने लोरी का माथा चूम लिया” मेरी प्यारी बच्ची … बहुत खुश रह तू हमेशा”
“मम्मा .. एक और बात थी”

“हाँ..बोल। आज तो तू मुझे हैरान ही कर रही है सुबह से। अब न जाने क्या आने वाला है” सुपर्णा मुस्कुरा उठी बोलते बोलते।
“वो अगर आपका भी कोई खास दोस्त बने तो आप मुझे बताना” लोरी के चेहरे पर शरारत झलक रही थी।
“कुछ भी पागलों जैसी बात करती है तू … चल अब घर चलें” सुपर्णा एक झिडकी के साथ उठ खड़ी हुई।
“आई एम सीरियस मम्मा.. मैं चाहती हूँ कि आपका कोई एक ख़ास दोस्त बने।” लोरी के चेहरे पर अब शरारत नहीं बल्कि एक परवाह थी।

सुपर्णा ने लोरी की बात अनसुनी करके कार स्टार्ट की और दोनों रेडियो सुनते हुए घर की ओर चल दिए। दो माँ बेटी शाम को घर से निकली थीं और दो बेस्ट फ्रेंड्स रात को वापस घर लौट रही थीं।

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उम्र की रौ बदल गई शायद, हम से आगे निकल गई शायद। – वामिक़ जौनपुरी “इतनी लंबी उम्र क्या अकेले गुज़ारोगी? दुनिया क्या कहेगी?” यही सवाल उसकी खिड़की पर टँगे

बालम तेरे झगड़े में रैन गयी…

छुट्टी वाला दिन रागों के नाम होता। कमरे में जगह-जगह रागों के उतार-चढ़ाव बिखरे रहते। मुझे अक्सर लगता अगर हम इन्हीं रागों में बात करते तो दुनिया कितनी सुरीली होती।

एक ना-मुक़म्मल बयान

तारीख़ें.. कुछ तारीख़ें चीख होती हैं वक़्त के जिस्म से उठती हुई… कि मुझे सुनो, मैंने क्या खोया है तुम्हारे इस बे-मा’नी औ’ बेरुख़ी से भरे सफ़र में। कुछ तारीख़ें

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