ख़ुद पे मुलम्मा चढ़ाए फ़रेबी लोग!
“आ भी जा आ भी जाए सुबह आ भी जारात को कर विदादिलरुबा आ भी जा… sabahat-afreen
“आ भी जा आ भी जाए सुबह आ भी जारात को कर विदादिलरुबा आ भी जा… sabahat-afreen
सन्तनगर के राजा का खजाना भरा हुआ था। जैसे कि परम्परा है, राजा बड़ा सुखी था। विशाल महल, सोने का सिंहासन, रत्नजड़ित मुकुट, सुन्दर रानियाँ, इनमें से पैदा हुये वंश
रजुआ। एक घोड़े का नाम था यह। वैसे तो घोड़े को घास से दोस्ती नहीं करनी चाहिए पर इस वाले ने इसने कि घास को नहीं खायेगा। धरती की हरियाली
“सुनो.. हम इस रास्ते से वॉक के लिए नहीं जाया करेंगे।” क्यों ? मुझे पसंद नहीं ये रास्ता। क्या? शहर का सबसे खूबसूरत रास्ता तुम्हें पसन्द नहीं? ये हरा भरा
क्या मैं इस बेंच पर बैठ सकती हूँ? नहीं, आप उठिए नहीं – मेरे लिए यह कोना ही काफी है। आप शायद हैरान होंगे कि मैं दूसरी बेंच पर क्यों
रज़िया ने टी.वी. देख रहे अपने शौहर से कहा – सुनिए, आज कहीं घूमने ले चलिए न! कितना सुहाना मौसम है! अभी बारिश होकर रुकी है। ओहो, तुम भी। अब
– ओह, कैसा अजीब शहर है न यह! अलसुबह ही शोर होने लगता है। देर रात तक भी गाड़ियों के आने – जाने की आवाजें आती रहीं। मैं तो सो
रेल विभाग के मंत्री कहते हैं कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं। ठीक कहते हैं। रेलें हमेशा प्रगति करती हैं। वे बम्बई से प्रगति करती हुई दिल्ली
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