सिनेमा के बहाने

क़िस्सों की ज़रूरत और उनके पीछे झाँकती खिलंदड़ मुस्कान: जूलिया रॉबर्ट्स

कहानी में नाटकीयता की अवधारणा को लेकर हॉलीवुड ने अपने सिनेमा को शिखर तक पहुंचाया है। ‘ड्रामा’ शब्द में जो मंतव्य छुपा हुआ है वही कहानी और अभिनय को लेकर

बस तेरा नाम ही मुक़म्मल है: गुलज़ार

हिन्दी साहित्य और सिनेमा में जो हैसियत गुलज़ार साहब की है और रही, वैसी किसी की न थी। मतलब सीधा-सीधा कला में दखलंदाज़ी। यानि गीत, कविता, नज़्म, शायरी, कहानी, पटकथा,

इरफ़ान : वो कैमरे में झाँक भर ले

राजस्थान साहित्य अकादमी की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘मधुमती’ के ताज़ा मई 2020 अंक में अभिनेता इरफ़ान पर मेरा यह विशेष आलेख प्रकाशित हुआ है। आलेख ‘इरफ़ान: वो कैमरे में झांक भर

सत्यजित रे के घर पर

आज सत्यजित रे का जन्मदिन होता है. रे से मेरा या हमारा क्या ताल्लुक़? क्या केवल पाँच-सात फ़िल्में देखने के बाद हम किसी को एडमायर करने लग जाते हैं. या

बदलना क्यूं है?

सांवली और स्याह रंगत वाली लड़कियों को गोरेपन की क्रीम बेचने वाला बाला (आयुष्मान खुराना) जब स्टेज पर अचानक यह कह उठता है कि हमें बदलना क्यूं है, तो सब

हमारे यहाँ भी एक शख्स है “गुलज़ार”

वो बिमल रॉय, असित सेन, ऋषिकेश मुखर्जी बासु, भट्टाचार्य की स्कूल की पैदाइश था। जिसका अपनी स्टोरी टेलिंग मेथड था। गीत लिखने आया लड़का, कहानियों से वाकिफ था। वो कहानियों

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