
गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति
गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने
गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने
जो पुष्प अपनी डाली पर ही सूखते हैं, वो सिर्फ एक जीवन नहीं जीते, वो जीते हैं कई जीवन एक साथ, और उनसे अनुबद्ध होती हैं, स्मृतियाँ कई पुष्पों की,
जो गये, उन्हें लौट आना चाहिए, लौटने से जीवन होता है परिष्कृत, व्यथन के मेघ अनाच्छादित होते हैं, और विषण्णता होती है लुप्त। क्योंकि लौटना संगम है दुःखों का, और
वे लड़कियाँ बथुआ की तरह उगी थीं जैसे गेहूँ के साथ बथुआ बिन रोपे ही उग आता है ठीक इसी तरह कुछ घरों में बेटियाँ बेटों की चाह में अनचाहे
किसी के प्रेम में पड़ जाने की सही-सही वजह नहीं बता पातीं कभी भी स्त्रियाँ, जबकि पुरुषों के पास होते हैं एक सौ एक कारण स्त्रियों के पास अपने प्रेम
मुझे याद हो तुम जाते हुए और इस तरह जाते हुए की मुड़ने की ज़हमत नही की गई। एक बार तो देखना बनता था ना मुझे पत्थर बनते हुए। मैं
आज के दिन कितना कुछ किया जा सकता था। कविता की किताब हाथ में लिए धूप तापते हुए शीत ऋतु के सुख को अपनी देह में नृत्य करने दिया जा
जैसे कई दिनों तक खिली घनी धूप के बाद अचानक होने लगती है तेज बारिश वैसे ही कभी चले आना तुम बिना बताए अचानक दरवाजे पर खड़े होकर मुस्कुराते हुए
1. दो औरतें जब निकलती हैं अकेले निकाल फेंकती हैं अपने भीतर बसी दुनिया उछाल देती हैं हवा में उम्र का गुब्बारा जिम्मेदारियों में दबे कंधे उचकने लगते हैं वैसे
संक्षिप्त जुड़ाव की अधिकता शरीर में अन्दर से ख़ालीपन ला देता है, महसूस करने की क्षमता अंतरङ्गता भूल जाती है, हमेशा स्पर्श की खोज में शरीर भ्रमित रहता
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