जो गये,
उन्हें लौट आना चाहिए,
लौटने से जीवन होता है परिष्कृत,
व्यथन के मेघ अनाच्छादित होते हैं,
और विषण्णता होती है लुप्त।
क्योंकि लौटना
संगम है दुःखों का,
और दो दुःखों का संगम है ‘प्रेम’।
‘Lautna’ A Hindi Poem by Vijay Bagchi
जो गये,
उन्हें लौट आना चाहिए,
लौटने से जीवन होता है परिष्कृत,
व्यथन के मेघ अनाच्छादित होते हैं,
और विषण्णता होती है लुप्त।
क्योंकि लौटना
संगम है दुःखों का,
और दो दुःखों का संगम है ‘प्रेम’।
‘Lautna’ A Hindi Poem by Vijay Bagchi
रेलगाड़ी पहुँच चुकी है गंतव्य पर। अप्रत्याशित ट्रैजेडी के साथ खत्म हो चुका है उपन्यास बहुत सारे अपरिचित चेहरे बहुत सारे शोरों में एक शोर एक बहुप्रतिक्षित कदमताल करता वह
अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते
गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने
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