
गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति
गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने
गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने
जो पुष्प अपनी डाली पर ही सूखते हैं, वो सिर्फ एक जीवन नहीं जीते, वो जीते हैं कई जीवन एक साथ, और उनसे अनुबद्ध होती हैं, स्मृतियाँ कई पुष्पों की,
जो गये, उन्हें लौट आना चाहिए, लौटने से जीवन होता है परिष्कृत, व्यथन के मेघ अनाच्छादित होते हैं, और विषण्णता होती है लुप्त। क्योंकि लौटना संगम है दुःखों का, और
उम्र की रौ बदल गई शायद, हम से आगे निकल गई शायद। – वामिक़ जौनपुरी “इतनी लंबी उम्र क्या अकेले गुज़ारोगी? दुनिया क्या कहेगी?” यही सवाल उसकी खिड़की पर टँगे
किसी के प्रेम में पड़ जाने की सही-सही वजह नहीं बता पातीं कभी भी स्त्रियाँ, जबकि पुरुषों के पास होते हैं एक सौ एक कारण स्त्रियों के पास अपने प्रेम
मुझे याद हो तुम जाते हुए और इस तरह जाते हुए की मुड़ने की ज़हमत नही की गई। एक बार तो देखना बनता था ना मुझे पत्थर बनते हुए। मैं
आज के दिन कितना कुछ किया जा सकता था। कविता की किताब हाथ में लिए धूप तापते हुए शीत ऋतु के सुख को अपनी देह में नृत्य करने दिया जा
जैसे कई दिनों तक खिली घनी धूप के बाद अचानक होने लगती है तेज बारिश वैसे ही कभी चले आना तुम बिना बताए अचानक दरवाजे पर खड़े होकर मुस्कुराते हुए
1. दो औरतें जब निकलती हैं अकेले निकाल फेंकती हैं अपने भीतर बसी दुनिया उछाल देती हैं हवा में उम्र का गुब्बारा जिम्मेदारियों में दबे कंधे उचकने लगते हैं वैसे
छुट्टी वाला दिन रागों के नाम होता। कमरे में जगह-जगह रागों के उतार-चढ़ाव बिखरे रहते। मुझे अक्सर लगता अगर हम इन्हीं रागों में बात करते तो दुनिया कितनी सुरीली होती।
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