Hindagi

अछूत शरीर

संक्षिप्त जुड़ाव की अधिकता⁣ शरीर में अन्दर से⁣ ख़ालीपन ला देता है,⁣ ⁣ महसूस करने की क्षमता⁣ अंतरङ्गता भूल जाती है,⁣ हमेशा स्पर्श की खोज में ⁣ शरीर भ्रमित रहता

तुम ठीक हो ना

याद है तुम्हें जब उस ‌दिन तुम नहीं थे मेरे पास बैठे आती शाम में धीरे से बहती हवा के साथ। क्या… कह रहा था तब मैं, हाँ याद आया

प्रतिस्पर्धा

अंतिम प्रहर का इंतजार ना करना पड़े, इसलिए प्रत्येक प्रहर को अंत में परिवर्तित करने का संज्ञान लेना ही पड़ता है; मर्म की बाधा जीवन की एक मात्र ऐसी बाधा

निर्वाण

हर कोई निर्वाण का पथिक होना चाहता है, परिवर्तित भावनाओं के अनुरूप व्यवस्थाएँ भी करता है, स्वयं को दया एवं मानवता की भावना से, अनुप्राणित होते देखता है, और पृरोहित

तुम्हारी स्मृतियाँ

तुम्हारे संदेश चिट्ठियों की तरह लुप्त हो रहे हैं, परन्तु तुम्हारी स्मृतियाँ दूर्वा हो उठी हैं, जिनके लिए बीजारोपण आवश्यक नहीं, वो स्वतः उग आती हैं; स्वतः होना ही नेह

जिज्ञासु

मैं अघोषित जिज्ञासु हूँ प्रिय तुम्हारी पूर्व प्रेमिकाओं के नैन-नक्श, रूप के प्रति कि उनके सौन्दर्य ने तुम्हे कितने अंतराल तक बाँधे रखा और क्या उनकी देह देहरी पर तुमने

समानांतर दुःख

हमारे दुःख ट्रेन की पटरी की तरह बिछे रहे साथ-साथ लेकिन कभी एक न हो सके हम बुन रहे थे जो ख़्वाहिशों के नर्म स्वेटर उनके फंदे बीच-बीच में उतरते

आखिरी पेज

जो अंततः हार गईं अकादमिक परीक्षाओं के साथ ही रिश्तों की अपेक्षाओं में उनमें से कुछ के अवसाद फँदे पर टँगे मिले जो बच गईं शरीर के मरने से उन्हें

जीवन की गोधूलि

आधे जीवनोपरान्त भी सब कुछ नहीं बदला बस चंचलता पर स्थिरता व्याप गई अब तुमसे हँसी ठिठोली नहीं कर पाता लेकिन अभी भी तुम्हारे बालों की उलझने सुलझाने में मेरी

अभी यात्रा अधूरी है

अभी रह गए हैं अछूते कई मेरियाना गर्त अपनी ही आत्मानुभूति के और अधूरे उत्तर अपने ही प्रश्नों के अभी मौन सध नहीं रहा रह-रह बेचैनी होती है अपनी पीड़ा

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