प्रतिस्पर्धा

अंतिम प्रहर का इंतजार ना करना पड़े,

इसलिए प्रत्येक प्रहर को अंत में
परिवर्तित करने का संज्ञान लेना ही पड़ता है;

मर्म की बाधा

जीवन की एक मात्र ऐसी बाधा है,

जिससे बचने के लिए, सिर्फ एक नहीं,
अनेक हृदयों का भंग हो जाना अपरिहार्य है;

प्रतिस्पर्धाएँ,
मर्म का बंधन नहीं चाहतीं,
उन्हें चाहिए स्वतंत्रता, अविरत बहने की,
तटों को तोड़ने की,
और उस वेग को प्राप्त करने की,
जो उन्हें सागर से संयोजन का सुख दे;

उन्हें चाहिए विचारों का वह तीव्र तेज़,
जो उन्हें जब चाहे, जहाँ चाहे,
बिना किसी की अनुमति के प्रविष्टि दे;

उन्हें चाहिए एक वृहद आलिंगन,
जो संभव नहीं इस पृथिवी पर,
उन्हें बस मिल जाए एक निहारिका,
कई मंदाकिनियाँ अथवा,
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड!

‘Pratispardha’ Hindi Poem by Vijay Bagchi

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