जीवन की गोधूलि


Notice: Trying to access array offset on value of type bool in /home/u883453746/domains/hindagi.com/public_html/wp-content/plugins/elementor-pro/modules/dynamic-tags/tags/post-featured-image.php on line 36
आधे जीवनोपरान्त भी
सब कुछ नहीं बदला
बस चंचलता पर स्थिरता व्याप गई
अब तुमसे हँसी ठिठोली नहीं कर पाता
लेकिन अभी भी
तुम्हारे बालों की उलझने सुलझाने में
मेरी उँगलियों के पोर उतने ही दक्ष हैं
जितने
प्रेम की नवजात अवस्था में थे

हे! मनोरमे
मेरी आँखों में असमय पड़ गए जो जाले
उसने मुझे तुम्हारी आँखों के नीचे विस्तृत
गहरे काले मेघ देखने न दिए
लेकिन तुम्हारी आवाज के कम्पन से
मैं भाँप लेता हूँ
तुम्हारी पीड़ाओं के चढ़ते- गिरते ज्वार

बड़भागी हूँ मैं
जो तुम्हारे प्रभामयी नैत्रों को अपने अधरों से छूकर
सूर्यमुखी सा खिल उठता हूँ हर बार
लेकिन अभागा भी
कि झर जाता है उम्र का मुरझाया पात
हर प्रात

प्रिय !
विगत बसंत के स्वपनों को तज
इस पतझड़ को स्वीकार करोगी ?
या फिर मुझ मरुथल में भी
मरीचिका का भास करोगी ?

लेकिन
मैं तो निर्जन वन सा
बसने को अब भी आतुर हूँ
हाँ,
मैं वही हूँ… मैं वही हूँ…. मैं वही हूँ…

‘Jeevan Ki Godhuli’ Hindi Kavita by Deepti Pandey

Related

दिल्ली

रेलगाड़ी पहुँच चुकी है गंतव्य पर। अप्रत्याशित ट्रैजेडी के साथ खत्म हो चुका है उपन्यास बहुत सारे अपरिचित चेहरे बहुत सारे शोरों में एक शोर एक बहुप्रतिक्षित कदमताल करता वह

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: