Author: deepti-pandey

deepti-pandey

जिज्ञासु

मैं अघोषित जिज्ञासु हूँ प्रिय तुम्हारी पूर्व प्रेमिकाओं के नैन-नक्श, रूप के प्रति कि उनके सौन्दर्य ने तुम्हे कितने अंतराल तक बाँधे रखा और क्या उनकी देह देहरी पर तुमने

समानांतर दुःख

हमारे दुःख ट्रेन की पटरी की तरह बिछे रहे साथ-साथ लेकिन कभी एक न हो सके हम बुन रहे थे जो ख़्वाहिशों के नर्म स्वेटर उनके फंदे बीच-बीच में उतरते

आखिरी पेज

जो अंततः हार गईं अकादमिक परीक्षाओं के साथ ही रिश्तों की अपेक्षाओं में उनमें से कुछ के अवसाद फँदे पर टँगे मिले जो बच गईं शरीर के मरने से उन्हें

जीवन की गोधूलि

आधे जीवनोपरान्त भी सब कुछ नहीं बदला बस चंचलता पर स्थिरता व्याप गई अब तुमसे हँसी ठिठोली नहीं कर पाता लेकिन अभी भी तुम्हारे बालों की उलझने सुलझाने में मेरी

अभी यात्रा अधूरी है

अभी रह गए हैं अछूते कई मेरियाना गर्त अपनी ही आत्मानुभूति के और अधूरे उत्तर अपने ही प्रश्नों के अभी मौन सध नहीं रहा रह-रह बेचैनी होती है अपनी पीड़ा

इंतजार

इंतजार करना वैसे ही जैसे एक मजदूर दिहाड़ी का करता है रतजगा यात्री प्लेटफार्म पर अपनी ट्रेन का करता है एक याचक अपने हक में फैसले का करता है एक

युद्ध पुत्रियाँ और तितलियाँ

मुझे क्षमा करना मेरे साथी मैं नहीं उगा पाऊँगी उन स्त्रियों को अपनी कविताओं के खेतों में बथुआ और गाजर घास की तरह जो युद्धरत भूमि में धूल पर खून

प्रेम का आध्यात्म

प्रेम होगा नहीं तुम्हे बल्कि खिलेगा जैसे अधमरी टहनियों पर भी बरबस खिल उठते हैं गुँचे सूखी रोटी को देख भूखे बच्चे की चमक उठती है आँखें प्रेम होगा तब

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