नहीं चाहता कुछ बेसमय

नहीं चाहता कुछ बेसमय

हर पतझड़ पेड़ के दिल मे कुछ आग बढ़ती रहती दर्द के हर मौसम में नसों से बहता है कुछ ज्यादा खून फिर भी नही चाहता कुछ बेसमय हो। अपने

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