नहीं चाहता कुछ बेसमय


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हर पतझड़ पेड़ के दिल मे कुछ आग बढ़ती रहती
दर्द के हर मौसम में नसों से बहता है कुछ ज्यादा खून
फिर भी नही चाहता कुछ बेसमय हो।

अपने समय और रंग में ऊगे पेड़ की हर पत्ती
हो साथ उसका हरी से पीली हो झर जाने तक

जैसे पेड़ अपनी हर रग में पेड़ है
बनूं आदमी अपनी रग-रग से
राख हो जाने तक।

सोना ना बनूं तो ना बनूं
अच्छी तरह तप जाने तक
सीप में दबा गुमनाम मोती रहूँ
खुद की खोज हो जाने तक।

हर बात एक समय चाहती
विश्वास हो जाने तक

एक बाल भी धूप में सफेद ना हो कविता का
सच्ची कविता हो जाने तक।

‘Nahi Chahata Kuchh Besamay’ A Hindi Poem By Anurag Tiwari

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