Author: anurag-tiwari

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नहीं चाहता कुछ बेसमय

हर पतझड़ पेड़ के दिल मे कुछ आग बढ़ती रहती दर्द के हर मौसम में नसों से बहता है कुछ ज्यादा खून फिर भी नही चाहता कुछ बेसमय हो। अपने

जब अकेला होता होगा ईश्वर

जब अकेला होता होगा ईश्वर तो क्या करता होगा क्या अपनी मर्ज़ी से सोता जागता होगा क्या दिन में उसे स्वप्न कोई आता होगा किसी पहाड़ की छोटी से चिल्लाता

कविताएँ – अनुराग तिवारी

कविताएँ बेपैर चलती हैं और तय करती हैं हज़ारों मीलों की यात्रा बेपंख उड़ती हैं सात समुन्दर पार किसी प्रवासी पक्षी की तरह पढ़ने वालों का बनाया अनुकूल आश्रय और

नहीं जानना – अनुराग तिवारी

नहीं जानना हर नाकामी के पीछे का सच कि ज़िंदगी की गाड़ी उल्टे मुँह चल नहीं सकती मद्दे होने, ठहरने की कोई मोहलत भी नहीं जब मृत्युशैय्या में होने के

फ़ोटोग्राफ़र

फ़ोटोग्राफ़र सबसे बेख़बर बेपरवाह शिकारी है चलते फिरते वक़्त का शिकार करता है और वक़्त किसी कभी न पिघलने वाली बर्फ़ की तरह जमा रहता है उसके एक इशारे से

तितलियाँ हमेशा बहुत उम्मीद से हमें देखती हैं

हम तौलते हैं ज़मीन के टुकड़े अधिकतर नहीं जानते ज़मीन का वज़न और उसका इतिहास हमारे ख़्वाबों में आती हैं जन्नत की स्त्रियाँ प्रेमिका और पत्नी की तरह जब हम

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