क्या अपनी मर्ज़ी से सोता जागता होगा
क्या दिन में उसे स्वप्न कोई आता होगा
किसी पहाड़ की छोटी से
चिल्लाता होगा
अपने मन की बात
चने की भाजी का मौसम है
और उसने ना जाने कबसे खाई नहीं है
ज़रूर आता होगा उसके मन
सोचता होगा अमेरिका और चायना
और फ़लाने और ढिकाने को ऐसा
क्या करना चाहिए कि
विश्व में शांति हो और
उसके लिए वह क्या सकता है
फिर अचानक उसे कौंधता होगा ये विचार
मैंने ये दुनिया बनाई है
और मैं अब इसके लिए कुछ नहीं कर सकता
उसका मन अपनी बनाई किसी महान नदी के
घाट का शुद्ध पानी पीने को भी करता होगा
अलबत्ता वो ऐसा कर नहीं पाता होगा
और एक पराए अपराध बोध से
अपना मन भरता होगा
ईश्वर को अपने बचपन की भी याद आती होगी
और याद आती होगी अपनी माँ की गोद
और कैसे पूरी होती थी
उसकी बड़ी से बड़ी ज़िद्द
बचपन में
और तब तो और
जब वह मिल ही नहीं पाता
अपनी माँ से अब
और तब भी
जब उसकी कुछ सुनी नहीं जा रही
शाम होते होते उसे थकान हो आती होगी
और उसका मन एक चाय पीने का होता होगा
चाय पीते पीते
ईश्वर अपने प्रेम के बारे सोचता होगा
किसी मुलाक़ात की स्मृति उसे गुदगुदाती होगी
और मूड़ बनाए रखने के वह
झूमकर कर नृत्य तो करता होगा।
ईश्वर रात में अपने किताबों के कमरे में
बैठकर कुछ आगे का पढ़ने से पहले
सोचता होगा कि वो कर क्या सकता है
इसके पहले कि वो ख़ुद का कुछ करे
उसे बुला लिया जाता है कोई दंगा सुलटाने
ईश्वर फिर से अकेले हो सकने के बारे में सोचकर
बेमन से चला जाता होगा
अपने भक्तों के पास
उसे ईश्वर होने का अकेलापन कैसा लगता होगा।
‘Jab Akela Hota Hoga Ishwar’ A Hindi Poem By Anurag Tiwari