कविताएँ बेपैर चलती हैं
और तय करती हैं
हज़ारों मीलों की यात्रा
और तय करती हैं
हज़ारों मीलों की यात्रा
बेपंख उड़ती हैं
सात समुन्दर पार
किसी प्रवासी पक्षी की तरह
पढ़ने वालों का बनाया अनुकूल आश्रय
और उनके मौजूँ होने का मौसम उन्हें खींचता है
अनुवादक कविता के
परदेसी प्रेमी
उनकी भाषा की पुडिया
अपनी भाषा में खोलकर
बग़ैर वीज़ा पासपोर्ट के
उन्हें अपना देश घुमाते हैं
हर कविता एक बहुत बड़े पचरंगे
स्वप्निल तार का हिस्सा
जिससे बाँधा जाएगा
हर पल बिखरती विभजती झगड़ती
ख़तरे के निशान तक डूबी
दुनिया को एक दिन
रक्षा सूत्र और प्रेम सूत्र बाँधने की तरह।