Author: Bhaskar-Tiwari

Bhaskar-Tiwari

मेरा गांव

चलते चलते थक जाता है पाँव चलते चलते खत्म हो जाती है राह चलते चलते आसान हो जाता है गाँव चलते चलते उड़ने लगते हैं पखेरू अचानक से फुर्रर्र फुर्र

एकांत कितना दूर है

क्या समुद्र के उस छोर पर जहां उत्पन्न नहीं होता कोई ज्वार या दोनों ध्रुवों के बीचों बीच जहां समाहित होती है समूची क्रियाएं। नहीं, शायद उस बूढ़े पीपल के

instagram: