मेरा गांव


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चलते चलते थक जाता है पाँव
चलते चलते खत्म हो जाती है राह
चलते चलते आसान हो जाता है गाँव
चलते चलते उड़ने लगते हैं पखेरू
अचानक से फुर्रर्र फुर्र र‌ 

चोंच से दबा लेती तिनका या आम का टिकोरा
जिसमें भर देती है बार बार गुड़ चीनी
घर में गोबर पुताई की सुगंध
गोशाले में रंभाती गइया,
एक काल्पनिक गोकुल और मेरा गांव
घूमते घूमते छिपती नहीं चहचहाहट
क्यारियां चढ़ते नहर, नहर बाद नदी, फिर नाला
चलते चलते पार कर जाते हैं सारी अफवाहे
चलते चलते ही खत्म हो जाती है गाँव की छाँव

कच्ची छप्पर वाली घर, घर में पिंजरा
पिंजरा विहीन तोता, रोज सुबह सुनाता हरी भजन
सीता राम सीता राम

पलाश बन में महुए की टपकन
रात दो बजे से कच्चे सड़क में टप टप टप
आबो हवा में फिरता स्वदेशीपन
दोपहर में आम की सुगंध वाली छाया
शाम में पोखर किनारे की गप्पें
चरवाहे की ओट खेती पर नज़र
दादा के हाथों चाय का शिड़ुपन

दादा का टेप रिकॉर्डर,रेडियो,आकाशवाणी पर चलता
महेंद्र कपूर की मधुर आवाज़ में
चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों
अजनबियों की इस दुनिया में लाखों बने रहे अजनबी
पर यहां का जानवर भी नहीं
हिंसक और पालतू दोनों
कुत्ते को रोटी के लिए बुलाते तू तू तू
एक अत्यंत वफादार जीवन का आगमन
अमरूद के पेड़ पर रखी ढक्कनी में
पानी पीता कबूतर,
एक सुंदर अनुभव
एक असफल मेहनत
विफल अभ्यर्थी जीवन, जीव-विज्ञान का

दोपहर में आम कभी नहीं तोड़ पाया
मुड़कटवा का डर माँ की आवाज़ में ममता स्वचलित
कारणवश लू से उत्तरपूर्व में रहते हुए अछूता रहा।

‘Mera Gaon’ Hindi Poem by Bhaskar Tiwari

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