एकांत कितना दूर है


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क्या समुद्र के उस छोर पर
जहां उत्पन्न नहीं होता कोई ज्वार
या दोनों ध्रुवों के बीचों बीच
जहां समाहित होती है समूची क्रियाएं।

नहीं, शायद उस बूढ़े पीपल के पेड़ के नीचे
जहां चोटिल होकर गिर पड़ा है आकाश,
जहां फट चुका है बादल,
जहां नन्ही चिड़िया नीड़-विहीन हो चुकी है।

आह! कितना घातक है यह,
एकांत को पाना
प्रलय की ओर जाना

शायद,उसी काल्पनिक शांति को पाने जैसा
जहां कोई शांत कराने वाला न हो
जैसे सफेद चादर से लिपटी हुई बर्फ
नीड़-विहीन पक्षियों, नींद विहीन मुसाफ़िरों जैसा,
प्रतीत होता है एकांत की ओर जाना।

नन्ही चिड़ियाँ, क्या तुम फिर से
एकांत में  बनाना चाहती हो घोंसला।
एकांत अब यहां से ज्यादा दूर नहीं
पर वहां पुनः जाना  हो सकता है घातक।

एकांत में कोई स्मृतियां नहीं पनपती
यथार्थ, जिसकी कोई स्मृति न हो
वह शून्य होता है
प्रेम कभी शून्य नहीं होता।

अरे! ओ, नन्ही चिड़ियाँ
तुम प्रेम को संबोधित करना।
एकांत को तलाशने में,
मत करना अपना समय व्यतीत।

तुम संजोए रखना अपनी स्मृतियां
और समय आने पर बिखेर देना ओलों की तरह
प्यारी चिड़ियाँ,
सुनो प्यारी चिड़ियाँ
तुम बर्फ की तरह 
मत करना अपनी स्मृतियां विलीन
बचाए रखना खुद में प्रेम और स्मृति दोनों,
बचाए रखेंगे यही तुम्हे अंत तक।

‘Ekant Kitna Door Hai’ A Hindi Poem by Bhaskar Tiwari

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