Author: jacinta-kerketta

jacinta-kerketta

सारंडा के फूल

नींद में डूबी बेख़बर फूलों की ख़ुशबू उठती है तिलमिला कर, जब नथुने भरने लगते हैं मशीनों की गंध से और फटने लगते हैं कान विस्फोटों से। उठकर महसूस करती

पहाड़ और पहरेदार

पहाड़ के पहरेदार जन्म से पहाड़ को जानते हैं सूंघ कर जंगल की गंध बताते हैं नाड़ी छूकर उसकी देह का ताप और उसके चेहरे के बदलते रंग बताते हैं

नदी, पहाड़ और बाज़ार

गाँव में वो दिन था, एतवार। मैं नन्ही पीढ़ी का हाथ थाम निकल गई बाज़ार। सूखे दरख़्तों के बीच देख एक पतली पगडंडी मैंने नन्ही पीढ़ी से कहा, देखो, यही

सड़क पर किसान

सड़कों पर नंगे पाँव चल पड़ा है पूरा गाँव अँधेरे के ख़िलाफ़ खड़ा बिहान पूछ रहा क्यों आत्महत्या करे किसान? कभी सोचा है तुमने कहाँ से यह अनाज आता है

instagram: