सारंडा के फूल March 30, 2021 नींद में डूबी बेख़बर फूलों की ख़ुशबू उठती है तिलमिला कर, जब नथुने भरने लगते हैं मशीनों की गंध से और फटने लगते हैं कान विस्फोटों से। उठकर महसूस करती
क्यों महुआ तोड़े नहीं जाते पेड़ से? January 11, 2021 माँ तुम सारी रात क्यों महुए के गिरने का इंतज़ार करती हो? क्यों नहीं पेड़ से ही सारा महुआ तोड़ लेती हो? माँ कहती है वे रात भर गर्भ में
पहाड़ और पहरेदार January 6, 2021 पहाड़ के पहरेदार जन्म से पहाड़ को जानते हैं सूंघ कर जंगल की गंध बताते हैं नाड़ी छूकर उसकी देह का ताप और उसके चेहरे के बदलते रंग बताते हैं
नदी, पहाड़ और बाज़ार December 26, 2020 गाँव में वो दिन था, एतवार। मैं नन्ही पीढ़ी का हाथ थाम निकल गई बाज़ार। सूखे दरख़्तों के बीच देख एक पतली पगडंडी मैंने नन्ही पीढ़ी से कहा, देखो, यही
सड़क पर किसान December 8, 2020 सड़कों पर नंगे पाँव चल पड़ा है पूरा गाँव अँधेरे के ख़िलाफ़ खड़ा बिहान पूछ रहा क्यों आत्महत्या करे किसान? कभी सोचा है तुमने कहाँ से यह अनाज आता है