सड़क पर किसान


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सड़कों पर नंगे पाँव

चल पड़ा है पूरा गाँव

अँधेरे के ख़िलाफ़ खड़ा बिहान

पूछ रहा

क्यों आत्महत्या करे किसान?

कभी सोचा है तुमने

कहाँ से यह अनाज आता है

क्या यह देश सिर्फ़ धूप खाता है?

हर एक चीज़ का दाम वसूलने वालों

तुम्हारी भूख की क़ीमत कौन चुकाता है?

क्यों खेत हल लेकर

देश के चौराहे पर पड़ा रहेगा?

क्यों उसका आँगन

नई सड़क के नीचे गड़ा रहेगा?

क्यों शहर की नींव में

कोई गाँव दबा रहेगा?

क्यों पोकलेनों से

कटकर छाँव गिरा करेगा?

क्यों अन्नदाता सड़क पर दम तोड़ेंगे

गाँव से निकलकर वे

तुम्हारे शहर को घेरेंगे

तुम्हारे बदन पर लाखों का सूट

उनके लिए नहीं पानी की एक घूँट

जिनकी जेबें भरने के लिए

किसानों का पेट तुम काट रहे

सब जानते हैं छुप-छुप कर

किस-किसके तलवे चाट रहे

क्यों तुमसे न वह आज लड़ेगा

मूर्तियाँ गिराते-गिराते

गिर गए हैं जो अपने भीतर

हुजूम किसानों का फिर से उन्हें

सवालों के चौराहे पर खड़ा करेगा।

जसिंता केरकेट्टा की अन्य रचनाएँ।

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