Author: prem-kumar

prem-kumar

वह सूखा पत्ता बनना चाहता हूँ

मैं बन जाना चाहता वह सूखा पत्ता जिसे तुम उड़ेल देना जहाँ तुम चाहो बस एक बार उस सूखे पत्ते से पूछ लेना वह तुम्हारे आने के इंतजार में कितनी

विरह-राग

रात ख़ामोश है इतनी ख़ामोश कि मुझे मेरे ही हृदय की धड़कन मेरे कानों तक सुनायी दे रही है (जब से मैं तुमसे मिला हूँ मेरी धड़कन की गति कुछ

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