रात ख़ामोश है
इतनी ख़ामोश कि
मुझे मेरे ही हृदय की धड़कन
मेरे कानों तक सुनायी दे रही है
(जब से मैं तुमसे मिला हूँ
मेरी धड़कन की गति कुछ तेज हो गई है
इसीलिए कभी-कभी दिन के उजाले में भी
मुझे सुनाई देती हैं मेरी धड़कन)
मैं भी ख़ामोश हूँ
और बैठा हूँ
उसी छत पर
जिस छत पर बैठ चाँद-तारों
पक्षियों, वृक्षों से बातें किया करता था
तुम्हारे बारे में
और लिखा करता था
तुम्हारे लिए
ख़त और कविता
आज मेरे ये सभी साथी
मुझसे पूछ रहे हैं मेरी ख़ामोशी की वजह
मैं क्या कहूँ
प्रिय उनसे?
यह कि तुम मुझे छोड़कर चली गयी…
या यह कि तुम्हे कोई और मिल गया?
नहीं नहीं
कभी नहीं कहूँगा
यदि मैं उनसे यह कहूँगा
तो वे तुम्हें बेवफ़ा समझेंगे
(मैं नहीं चाहता जिसे वे
प्रेम समझते थे उसे समझे दगा
और फिर किसी प्रेम पर विश्वास न करें।)
इसीलिए मैं उनसे कह दे रहा हूँ
तुम कुछ देर के लिए गयी हो
फिर लौट आओगी
लौट आओगी न?
लौटना उम्मीद है
तुम लौट आओगी
मैं उन्हें इसी उम्मीद में रखना चाहता हूँ
और मैं भी इसी उम्मीद के साथ जीना चाहता हूँ।
‘Virah-Raag’ A Beautiful Hindi Poem by Prem Kumar Saw