वह सूखा पत्ता बनना चाहता हूँ


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मैं बन जाना चाहता
वह सूखा पत्ता
जिसे तुम उड़ेल देना
जहाँ तुम चाहो
बस एक बार
उस सूखे पत्ते से
पूछ लेना

वह तुम्हारे आने के इंतजार में
कितनी थपेड़ें खाए हैं
हवाओं के
आँधियों के
हर समय उड़ते
पंछियों के डैनों से

कितनी बारिशें करवाए हैं
अपनी लघु जीवन में

कितने जीवन दिये हैं
इस ख़ुदग़र्ज़ ज़माने को

और एक दिन गिर गया है
सूख कर, और बिखर गया है
उस स्थल में लिहाफ़ बन कर

शायद तुम अब भी
आ जाओ उसके लिए
बस इसी प्रतीक्षा में
एक दिन स्वयं को
मिला देता है उसी मिट्टी में
जहाँ से उसके जीवन का उत्कर्ष हुआ था।

‘Wah Sookha Patta Banna Chahta Hun’ A Hindi Poem by Prem Kumar Saw

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