Author: sudheer-dongre

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विरक्ति

आज के दिन कितना कुछ किया जा सकता था। कविता की किताब हाथ में लिए धूप तापते हुए शीत ऋतु के सुख को अपनी देह में नृत्य करने दिया जा

अंत तक बचाए रखना

फूल तोड़कर तुम्हारे बालों में खोंस देना प्रेम नहीं है। पौधे में फूल को, तुम्हारे बालों के लिए अंत तक बचाए रखना प्रेम है। तुमसे इश्क़ का इज़हार कर देना

प्रेम ढूंढ़ता रहा कोमल स्पर्श

सुखों से उपजा दुख। दुखों से मैं। और फिर देर तक काँपता रहा जीवन निष्प्रयोज्य… निर्रथक… निरंतर… लहरें लहरों से टकराती रहीं जिजीविषा आखेट कराती रही। प्रेम ढूंढ़ता रहा कोमल

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