क्षणिका

क्रांति

कभी रसोई के कोनों से कभी धान के बीजों से कभी घूंघट की ओट से तो कभी मात्र बोली की चोट से सबसे छोटी लगने वाली ये सबसे बड़ी और

मृत्यु

मृत्यु जीवन की कविता का उपसंहार है! Mrityu by Mehnaz Mansoori mehnaz-mansoori

ओस-घास

कभी देखना धूप निकलते ही झट से ओस का घास से उड़ जाना लगता है जैसे अचानक किसी अपने ने हमेशा के लिए आंखें मूंद ली हों। Os-Ghaas ‘A Hindi

ख़फा

कभी नही जान पाते कि, सिर्फ और सिर्फ तुम होते हकदार खफ़ा के! आदतें, नही होती कभी धान की खेती की तरह जिनको रोपने के बाद समय की बेबसी का

आत्म आलिंगन

आलिंगन,⁣ दो अलग-अलग देह के⁣ मिलने की क्रिया है।⁣ ⁣ हम दोनों तो एक ही देह के⁣ दो भाग हैं…⁣ ⁣ मैं जब भी उससे मिलता हूँ।⁣ अपनी ही देह

प्रेमी

  ~1~ प्रेमिका से पहली मुलाक़ात का दिन-समय-स्थान पूछ प्रेमियों को उलझन में न डालो उनके पास केवल यादें हैं वे सूखी नदी के मल्लाह हैं याद दिलाने से रो

लोकतंत्र

खरगोश बाघों को बेचता था फिर अपना पेट भरता था बिके बाघ खरीदारों को खा गये फिर बिकने बाजार में आ गये। anamika-anu

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