ख़फा


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कभी नही जान पाते
कि, सिर्फ और सिर्फ तुम
होते हकदार खफ़ा के!
आदतें, नही होती कभी
धान की खेती की तरह
जिनको रोपने के बाद समय की बेबसी का इंतजार करना रहे
———————-
आपके खफ़ा होने से
बीज रोपने के बाद स्फुटित होने का इंतजार
युग के बराबर होगे
या यों कह लो
कि सरल होना भी तब ही महत्त्वपूर्ण होगा
जब बारिश की छीटों से ही शाखों पर पुष्प खिले!
________________________

तुम्हारा खफ़ा होना बोझ होगा
बहती नदी पर पाटे गये पत्थर रखने जैसा तब वो दो हिस्सों में बहेगी
और मुलाकातें उस पत्थर पर
आते जाते दम तोड़ देगी!

दिलीप भारद्वाज की अन्य रचनाएँ।

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