COVID-19

Lockdown

छोड़नी उनको पड़ीं ये बस्तियाँ, दूर मंज़िल और ना थीं रोटियाँ भूखे बच्चों को सुलाये किस तरह, माँ सुनाती सिर्फ़ उनको लोरियाँ चुभ रहा था ये नज़ारा इस-क़दर, बिल्डरों को

अच्छा सबक आवाम को उसकी अदाओं ने दिया – अभिषेक वर्मा

कैसा मरज़ आफत बना करके फ़िज़ाओं ने दिया इंसानियत को घाव इंसानी वफाओं ने दिया। पैदल चला है काफ़िला के गाँव मिल जाये कहीं इस बार फिर धोखा शहर की

गिनती बनकर लौटा हूँ – शिफाली

तुम्हारे शहर की खिड़की में क्यों नहीं था मेरे हिस्से का भी सूरज तुम्हारे शहर के आंगन में क्यों मेरा कोना नहीं था तुम्हारे दीवारों-दर सारे ये कोठियां ये बंगले

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