छोड़नी उनको पड़ीं ये बस्तियाँ, दूर मंज़िल और ना थीं रोटियाँ भूखे बच्चों को सुलाये किस तरह, माँ सुनाती सिर्फ़ उनको लोरियाँ चुभ रहा था ये नज़ारा इस-क़दर, बिल्डरों को
तुम्हारे शहर की खिड़की में क्यों नहीं था मेरे हिस्से का भी सूरज तुम्हारे शहर के आंगन में क्यों मेरा कोना नहीं था तुम्हारे दीवारों-दर सारे ये कोठियां ये बंगले