मोहल्ला : सुधीर शर्मा की कविता
ज़रा पीछे मुड़ो देखो वहां पच्चीस बरस पहले मुहल्ले में पुराने और क्या क्या छोड़ आये हो। कई मौसम उघारे भीगते रहते हैं छज्जों पर कोई दोपहरी नंगे पाँव दिन
ज़रा पीछे मुड़ो देखो वहां पच्चीस बरस पहले मुहल्ले में पुराने और क्या क्या छोड़ आये हो। कई मौसम उघारे भीगते रहते हैं छज्जों पर कोई दोपहरी नंगे पाँव दिन
दिल चाहता है फिर से बच्चा हो जाऊँ घर आया है एक बूढ़ा आदमी, जिसके ललाट पर ‘समाज’ लिखा है मुझे पैर छूने थे उनके मैं जाऊँ उनके निकट, मुँह
आईना आपको दिखाऊँ क्या ख़ामियाँ फिर से मैं गिनाऊँ क्या दिल की राहों में लुट गया देखो पास अब कुछ नहीं गवाऊँ क्या मेरी हालत से आप वाक़िफ़ हैं आपसे
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