ज़रा पीछे मुड़ो देखो वहां पच्चीस बरस पहले
मुहल्ले में पुराने और क्या क्या छोड़ आये हो।
कई मौसम उघारे भीगते रहते हैं छज्जों पर
कोई दोपहरी नंगे पाँव दिन भर फिरती रहती है।
टहलती रहती है इक रात घंटो सूनी सड़कों में।
मुहल्ले में पुराने और क्या क्या छोड़ आये हो।
कई मौसम उघारे भीगते रहते हैं छज्जों पर
कोई दोपहरी नंगे पाँव दिन भर फिरती रहती है।
टहलती रहती है इक रात घंटो सूनी सड़कों में।
उसे जो मेथ्स के कुछ IMP नोट्स भेजे थे,
मिले उसको नही शायद…
कोई भी हल नही निकला।
वो गड्ढे करके आंगन में जो सब कंचे छुपाये थे,
सुना है रोते रोते दूर तक आये थे पुलिया तक।
निकलते वक्त बोला था ज़रा तुम सरसरी नज़रे घुमा लेना,
के कुछ छूटा तो गुज़रे वक़्त में लम्हों को लेने कौन आएगा।