Author: adarsh-bhushan

adarsh-bhushan

तुम्हारी भाषा का संगीत

तुम्हारे होने और न होने दोनों में संगीत है जो जगह इन दोनों के बीच बन गई है जिसमें तुम मेरे वर्तमान का यथार्थ नहीं महज़ बीते हुए का एक

लोहा और कपास

आँतों को पता है अपने भूखे छोड़े जाने की समय सीमा उसके बाद वे निचुड़ती पेट कोंच-कोंचकर ख़ुद को चबाने लगतीं हैं आँखों को पता है कितनी दुनिया देखने लायक़

इतना होना बचा रहा

जो तुम्हारा नहीं तुम्हें मिल गया भी तो क्या ढोते हुए कहाँ से कहाँ जाओगे चिड़िया चली जाती है पेड़ पंख नहीं उगाता जड़त्व बाँधकर वहीं खड़ा रहता है फ़सलें

बीमार समय में

एक बूढ़ा सियार हुआँ हुआँ का शोर मचाता है पीछे से लाखों सियार जयकार लगाते हैं छद्म वेश में जो सियारों में शामिल नहीं हैं उनके लिए हस्ताक्षरित सियारी खाल

मत भूलना

मत भूलना कि हर झूठ एक सच के सम्मुख निर्लज्ज प्रहसन है हर सच एक झूठ का न्यायिक तुष्टीकरण तुम प्रकाश की अनुपस्थिति का एक टुकड़ा अंधकार अपनी आँखों पर

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