तुम्हारी भाषा का संगीत


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तुम्हारे होने और न होने
दोनों में संगीत है
जो जगह इन दोनों के बीच बन गई है
जिसमें तुम मेरे वर्तमान का यथार्थ नहीं
महज़ बीते हुए का एक काल्पनिक मूर्त हो
वहाँ एक लोप है
एक गाढ़े अन्धकार से भरा हुआ नेपथ्य
जिसमें नहीं बजता कुछ

तुम्हारे होने का संगीत
दिशाओं पर नहीं करता निर्भर
कहीं से भी
कभी भी पहुँच जाता है
यह बताते हुए कि तुम हो अभी
बचे हुए स्वरों में
जो अभी तक नहीं सुन पाया हूँ

तुम्हारे न होने का संगीत
संगीत कम शोर ज़्यादा है
जिसे केवल इसलिए सुनता जा रहा हूँ कि
कोई आत्मा को खखोरता हुआ
अवदात कल्पनाओं को मन की कचोट से न भर दे

संगीत का अभाव आत्मा को रुग्ण कर देता है
इस दुनिया में संगीत तब भी था जब भाषा नहीं थी
राग हमारी सभ्यता में शुरू से ही हैं
मनुष्य संगीत के साथ जन्म लेता है
और संगीत के साथ तज देता है शरीर
मनुष्य जीवन भर मात्र संगीत बरतना सीखता है

तुम्हारे होने से जान पाया
मैं संगीत का बर्ताव
तुम्हारे न होने से मेरी भाषा अवश्य चली गई
लेकिन संगीत नहीं गया

जो जगह इन दोनों के बीच बन गई है
वह संगीत का विपर्यय है
जहाँ जीना कोई कला नहीं
त्राण की एक असंभाव्य परिकल्पना है।

आदर्श भूषण की अन्य रचनाएँ।

‘Tumhari Bhasha Ka Sageet’ Hindi Poem By Adarsh Bhushan

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