बीमार समय में

एक बूढ़ा सियार हुआँ हुआँ का शोर मचाता है
पीछे से लाखों सियार जयकार लगाते हैं छद्म वेश में
जो सियारों में शामिल नहीं हैं
उनके लिए हस्ताक्षरित
सियारी खाल बँटवाए गए हैं
कुछ इनमें ऐसे हैं
जो ना नारा लगाते हैं
ना रोष जताते हैं
इनके बिलों, कोटरों, माँदों में
अगले कई बिगड़ैल मौसमों के लिए
पर्याप्त संसाधन जमा हैं
जो नहीं लगाते नारा कहे जाने पर भी
सार्थक विरोध दिखता है जिनकी आँखों में
जंगल का क़ानून उनसे
यहाँ जीने की आज़ादी छीन लेता है
बोलने की आज़ादी छीन लेता है
कुछ समय में
साँस लेने की तयशुदा रक़म ना भरे जाने पर
बाक़ी जानवरों को देशनिकाला भी दे दिया जा सकता है
जिनके नाख़ून जितने ज़्यादा
पैने और नुकीले हैं
वे मुख्य दल में शामिल हैं
ऊँचे टीलों से फ़रमान ज़ारी करते हैं
जो पहले आए थे
भेड़िए थे
उनके बाद सियार आए
आनेवाले समय में लोमड़ियाँ आएँगी
उपमाएँ बदलती रहती हैं
जंगल का क़ानून
ख़ून का आदी है
जिनके थूथनों पर ख़ून लगा है
इस जंगल के पंजीकृत
विश्वासी मतदाता हैं
इंतखाबातों के वक़्त
सियारों का दल
पंजे छिपाये
श्वेतवर्णी बकरियों की तरह
मिमियाने लगता है
जंगल बनता बिगड़ता रहता है
आज और कल एक दूसरे के आगे पीछे चलते रहते हैं
सत्ता की कुर्सियों पर कोई निरामिष नहीं बैठता
अपेक्षाएँ सतायी हुई जनसंख्या की टेर हैं
हम एक बीमार समय में जी रहे बीमार लोग हैं।

आदर्श भूषण की अन्य रचनाएँ।

Related

अठहत्तर दिन

अठहत्तर दिन तुम्हारे दिल, दिमाग़ और जुबान से नहीं फूटते हिंसा के प्रतिरोध में स्वर क्रोध और शर्मिंदगी ने तुम्हारी हड्डियों को कहीं खोखला तो नहीं कर दिया? काफ़ी होते

गाँव : पुनरावृत्ति की पुनरावृत्ति

गाँव लौटना एक किस्म का बुखार है जो बदलते मौसम के साथ आदतन जीवन भर चढ़ता-उतारता रहता है हमारे पुरखे आए थे यहाँ बसने दक्खिन से जैसे हमें पलायन करने

सूखे फूल

जो पुष्प अपनी डाली पर ही सूखते हैं, वो सिर्फ एक जीवन नहीं जीते, वो जीते हैं कई जीवन एक साथ, और उनसे अनुबद्ध होती हैं, स्मृतियाँ कई पुष्पों की,

Comments

What do you think?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

instagram: