
पैंतीस बरस का जंगल
उम्र की रौ बदल गई शायद, हम से आगे निकल गई शायद। – वामिक़ जौनपुरी “इतनी लंबी उम्र क्या अकेले गुज़ारोगी? दुनिया क्या कहेगी?” यही सवाल उसकी खिड़की पर टँगे
उम्र की रौ बदल गई शायद, हम से आगे निकल गई शायद। – वामिक़ जौनपुरी “इतनी लंबी उम्र क्या अकेले गुज़ारोगी? दुनिया क्या कहेगी?” यही सवाल उसकी खिड़की पर टँगे
छुट्टी वाला दिन रागों के नाम होता। कमरे में जगह-जगह रागों के उतार-चढ़ाव बिखरे रहते। मुझे अक्सर लगता अगर हम इन्हीं रागों में बात करते तो दुनिया कितनी सुरीली होती।
तारीख़ें.. कुछ तारीख़ें चीख होती हैं वक़्त के जिस्म से उठती हुई… कि मुझे सुनो, मैंने क्या खोया है तुम्हारे इस बे-मा’नी औ’ बेरुख़ी से भरे सफ़र में। कुछ तारीख़ें
पिछले कुछ वक़्त से मैं भूलने लगी हूँ, छोटी-छोटी चीज़ें, छोटी-छोटी बातें, नाम, तारीख़ें। मुझे कभी फ़र्क़ नहीं पड़ा इन बातों से, पर अब भूलने लगी हूँ वे बातें जो
By subscribing to our newsletter you agree to our Terms and Conditions and Privacy Policy